SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 742
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लोकाशाह "वीर जिणेसर परणमि पाय, सुगुरु तरगु लह्यो सुपसाय । भस्मग्रह नो रोष अपारु जईन धरम पडियो अन्धकार ||१| चौदसय बयासी वैसाखई, वद चौदस नाम लुंको राखई । आठ वरिस नो लुंको थयो, सा डूंगर परलोकै गयो ||४|| दयाधर्म जलहलती जोत, सा लूंके कीधुं उद्योत । पनर सय बत्तीसौ प्रमाण, सा लुंको पाम्यो निर्वारण || १४ || पनर सय अठ्योत्तर जाऊ, माघ शुद्धि सातम प्रमाणऊ । भानुचन्द्र यति मति उल्लसऊ, दया धर्म लुंके विलसऊ ||२५|| सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] २. मरुधर केशरी मुनिश्री मिश्रीमलजी महाराज ने लोंकाशाह के जन्मादि के सम्बन्ध में निम्न प्रकार से उल्लेख किया है : [ ७२३ "अरहटवाडा के शाह हेमाजी ओसवंशीय के आप सुपुत्र थे । दफ्तरी आपका गोत्र था । माता का नाम गंगादेवी था । उस सुयोग्य दम्पति युगल से कार्तिक पूर्णिमा को वि० सं० १४७२ में आपका जन्म हुआ । आप एक होनहार पुत्र थे, आपका नाम लोकचन्द्र रखा गया । वि० सं० १४८७ में आप व्यापार व्यवसाय में लगे । आपके पिता सिरोही दरबार चन्द्रावती ( ? ) के प्रधान दीवान थे । दरबार से किसी कारण विरोध हो जाने से आप अपने प्रिय पुत्र को लेकर अहमदाबाद पहुंचे । अहमदाबाद में लोकाशाह जवाहरात का धन्धा करने लगे । यहां सन्त समागम से प्राप धार्मिक शास्त्रों का अध्ययन भी करने लगे । वि० सं० १५३० में आपने (आपको ) शास्त्रों का अध्ययन करते हुए (समय) ज्ञानजी यति के द्वारा दशकालिक सूत्र प्रतिलिपि करने को मिला। इसको पढ़कर आपने धर्म और साधु जीवन के प्राचार को समझा और शुद्ध धर्म का निरूपण करने लगे । इससे राहिल्लपुर पाटण के निवासी लखमसी आदि ४५ व्यक्तियों ने संयम ग्रहण किया ।" ३. प्राग्वाट इतिहास में श्रापके जीवन के सम्बन्ध में कतिपय नवीन तथ्यों पर प्रकाश डाला है : ४. वाडीलाल मोतीलाल शाह ने ऐतिहासिक नौंध में लोकाशाह के जीवन के सम्बन्ध में कतिपय तथ्यों पर प्रकाश डाला है, जो इस प्रकार है : “१. काशाह यतियों के उपाश्रय में गये .... उतारने के लिए दिये हुए शास्त्रों से एक-एक नकल यतियों के लिये और एक-एक घरू उपयोग के लिये लिखी । इसी तरह लोकाशाह के पास एक अरसे में अच्छा जैन साहित्य इकट्ठा हो गया ।" (ऐतिहासिक नौंध, पृष्ठ ६७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy