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________________ ७१८ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ (२) ऋष भाणोजी । गांव अरहटवाडा ना । बीसा ओसवाल गोत्र लोढा। सम्वत् १४३८ (१४२८) मां दीक्षा अहमदाबाद मां । (३) रिख भीदाजी। सिरोही ना रेवासी। बीसा ओसवाल । साघरिया गोत्री । जणा ४५ साथे दीक्षा लीधी । पाटण मां। इस प्रकार लोकाशाह सहित इक्कीस पाट की अर्थात् पट्टधरों की सूची इस पट्टावली में दी गई है । इसका सारांश इस प्रकार है : "जिस समय लोकाशाह बत्तीसों शास्त्रों का लेखन कर चुकने के अनन्तर पाटण में शास्त्रों का उपदेश कर रहे थे उस समय एक सौ बावन संघ आये। उन संघों के माहा आदि १५२ संघवी थे। वर्षा हो जाने के कारण मार्ग में सर्वत्र नीलरण फूलण जीव जन्तु आदि उत्पन्न हो गये थे। इस कारण उन १५२ संघवियों ने सम्वत् १४२८ में पाटण में ही अच्छा स्थान देखकर डेरे डाले। विना काम दिन बिताना बड़ा कठिन हो गया। उस समय उन संघवियों ने लोगों के मुख से सुना कि लोंकाशाह ने बत्तीस आगम लिखे हैं और उनकी प्ररूपणा करते हैं । यह सुनकर वे संघवी और संघ के लोग लोंकाशाह के पास आगमों की वाचना सुनने जाने लगे बत्तीस सूत्रों की वाचना सुन लेने के पश्चात् उन १५२ संघवियों ने लोकाशाह से पूछा- "हे लोंका लेखक ! भगवान् महावीर के एक लाख उनसठ हजार श्रावक हुए। उनमें बारह व्रतधारी, दस प्रमुख श्रावक और एक भवावतारी थे। उनका सूत्रों में विस्तारपूर्वक वर्णन है, पर उस वर्णन के अनुसार उन एकाभवावतारी श्रावकों में से किसी एक ने भी न तो कभी कोई एक भी संघ निकाला, न किसी ने कोई मन्दिर ही बनवाया और न किसी ने किसी प्रतिमा की पूजा ही की। यदि उन्होंने संघ निकाला होता, जिन मन्दिर बनवाये होते एवं प्रतिमाओं की पूजा की होती तो उसका पाठ उपासक दशांग में अवश्यमेव आता । इस प्रकार का पाठ उपासक दशांग में नहीं है । वस्तुतः इस कारण प्रतिमाएं सही नहीं हैं। हमने व्यर्थ ही संघ निकाल कर अपना पैसा बर्बाद किया है। गाडों के पहियों के नीचे आकर न मालूम कितने जीव मरे हैं। धिक्कार है इस प्रकार का संघ आदि निकालने का उपदेश करने वाले उदरपोषकों को । इस प्रकार अपने उद्गार अभिव्यक्त कर उन १५२ संघवियों ने सब प्रकार के सांसारिक बन्धनों को तोड़ कर श्रमणत्व अंगीकार कर लिया। लोंका ने भी दीक्षा ले ली और लोंका से उन १५२ साधुओं ने शास्त्र ग्रहण किये। तदनन्तर उन १५३ साधुअों ने विहार कर वन में निवास प्रारम्भ किया और वे धर्म का प्रचार करने लगे। महापन्नवणा में इस प्रकार का पाठ पाता है कि जिस समय श्रमण भगवान् महावीर मोक्ष के लिए महाप्रयाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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