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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह [ ६६५ नइ लागइ पणि बेटा नउ कीधउ धर्म स्युइ न लागइ। तथा केतला एक इम कहइ छारण नउ स्याहीस (श्याह अहीश-काला सांप) कीघउ होइ अनइं भांजियइ तउ पाप, तउ तेहनई वांद्यइ तथा दूध पायइ तथा वीसामरण कीधइ धर्म स्युइ नहीं ? (प्रश्न सं० १०) तथा केतला एक इम कहइ छई अम्हारइ प्रतिमां नइं पूजतां हिंसा ते अहिंसा । तउ रेवती नउ पाक श्री वीतरागई स्युइ नीं लीघउ, आधार्मिक आहार स्युइ न ल्यइ ? जे फूल, पारणी नी भक्ति ते बाह्य वस्तु छइ अनइ लाड्या जलेबी आदि देइं श्री वीतराग, गणधर, साधुनइ काजइं करइ तउ एतउ अंतरंग भक्ति छइ, प्रागलि वली धर्म नी वृद्धि घणी थाइ, विचारीजो ज्यो जी । (प्रश्न सं० ११) तथा वली कोई एक गछी नां वांणिज नउ नीम (नियम) नव भंगीइंल्यइ अनइ गछी ना वरिणज नउ लाभ बीजानइ देखाड़इ तउ तेहना नीम भाजइ, तउ जो अउनइं जेणइं पंच महाव्रत ऊचर्या होइ ते सावध करणी मांहि लाभ देखाड़इ तउ तेहना व्रत ठामि किम रहई ? विचरी जो ज्यो जी। (प्रश्न सं० १२) तया श्री अरिहंत नी स्थापनां मांहि श्री अरिहंत ना गुण नथी, अनइ गुरु नी स्थापना मांहि गुरु ना गुण नथी। केतला एक इम कहई छइं–जे गुरण तउ स्थापना मांहि नहीं परिण आपणउ भाव भेलियउइ तउ वंदनीय थाइ तउ हवइ जो वउनइं (उसे) गुण विना देव नी गुरु नी स्थापना मांहि अापरणइं भावि घाल्यइ गरज सरइ तउ बाप नीमानी (बीय नीमानी-अन्य नियमों की) तथा रूपा, सोना, जवाहर, गुल, खांड, साकर प्रमुख प्रापणइ भावि घाल्यइ गरज स्युइ न सरई ? अागिली वस्तु मांहि पितादिक (पीतादिकए) नउ गुण नथी अनइ आपणइ भावि भेल्यइ गरज स्युइ नस्सरइ ? डाह्या होइ तउ विचारीजो ज्यो जी-तउ देव नी, गुरु नी गरज किम सरइ ? एतावता गुण विना गरज न सरइ। वंदनीक ज्ञान, दर्शन, चारित्र सही जाणो । (प्रश्न सं० १३) इन १३ प्रश्नों के लेखन के पश्चात् इनके उत्तर लिखे गये हैं और अन्त में प्रशस्ति के रूप में जो उल्लेख है, वह निम्न प्रकार है : _ "प्रश्न १३ लूके पूछ्या, तेहना उत्तर सूत्र साखिइं श्री पासचंदि सूरिइं दीधा छई, छः शुभं भवतु, श्रीमद्दहीपुरीय (नागोरी) वृहत्तपागच्छाधिराज श्री पार्श्वचंद्र सूरीन्द्रण विरचिता चर्चा समाप्ता छः । यह प्रति कुल १० पत्रों की है, जिसके १६ पृष्ठों में यह लिखी गई है, प्रथम मुख पृष्ठ पर केवल इतना ही लिखा है : "लूकाए" पूछेल १३ प्रश्न न उत्तरो।" लालभाई दलपतभाई इण्डियोलोजिकल इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद के पुस्तक भण्डार में यह प्रति पुस्तक संख्या २४४६६ पर विद्यमान है। उसकी फोटोस्टेट कापी--"प्राचार्यश्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, लालभवन, जयपुर में विद्यमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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