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________________ सामान्य श्रुत्तधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह [ ६८१ करइ छइ, अनइ साधु चारित्रीयो एणइं हिंसा करइ नहीं, करावइ नहीं, अनुमोदइ नहीं।" तु जोउनई पावड़ी हिंसा लोक मोक्षनई कारणइं कहई छई, ते केहनी देखाड़ी करइं छइं ? साधु तु देखाडइ नहीं । डाहा हुइ ते विचारी जोज्यो, एह पिस्तालीसमु बोल। ४६. छइतालीसमु बोल : हवइ छइतालीसमु बोल लिखीइ छइ । तथा श्री आचारांग माहिं अध्ययन छठानइ उद्देसइ पांचमइ साधुनइ श्री वीतरागे इम कहिउं जे श्रोतानइं एहवु उपदेश देजे', ते अधिकार लिखीइ छइ–“पाईणं पडीणं दाहिणं उदीचीनं, आइखे विभाय दिके वेदवी से उट्ठिएसु अणुट्ठिएसु वा ससमाणे सुपवदेए संतिं विरति उवसमं रिणव्वाणं सोयवियं अज्जवियं मद्दवियं लावियं अणइवत्तियं सव्वेसिं पाणीणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खेज्जा, अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खमाणे णो अत्ताए ण आसादेज्जा नो अन्नाइं पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई आसादेज्जा । “ए आलावानइं मेलइं साधु चारित्रीओ जिहां जाइ तिहां एकान्त दयामइ उपदेश दिइ । पणि हिंसानु उपदेश न दिइ । एह छइतालीसमु बोल । ४७. सत्तालीसमु बोल : हवइ सत्तालीसमु बोल लिखीइ छइ । तथा श्री सिद्धान्त माहिं ठामि ठामि श्री जीवदया गाढ़ी सार प्रधान कही छइ, ते अधिकार लिखीइ छइ : एवं तु समणा एगे, मिच्छदिट्ठी प्रणारिया । असंकियाइ संकंति, संकियाइ असंकिरणो।। धम्मपन्नवणा जा सा तं तु संकति मूढ़गा । आरंभाईण संकेंति, अवियत्ता अकोविया ।। -श्री सूयगडांगे, प्रथमाध्ययने द्वितीयोद्देसे । जेवी रीते मृग पाश मां पड़े छे तेवी रीते केटलाक अनार्य मिथ्यादृष्टी श्रमण प्रशंकित जे धर्म ना अनुष्ठान, तेमां शंका करे छे अने हिंसादिक जे शंका ना स्थानो छे तेमां जरा पण शंका करता नथी। केटलाक मिथ्यादृष्टि अनार्य श्रमणो अज्ञानवादी शंकावादी छे तेत्रो न शंका करवा योग्य वस्तुप्रो मां शंका करे छे अने शंका करवा योग्य वातो (मा) अशंकित रहे छ । आ मुग्ध विवेकविकल तथा अपंडित दशविध जतिधर्मनी प्ररूपणा करवा मां शंका करे छे अने प्रारम्भ आदि पाप ना कारण मां शंका करता नथी। एयं खु नारिगणो सारं, जं न हिंसइ किंचरणं । अहिंसा समयं चेव, एतावंतं वियारिणया ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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