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________________ ६६४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास दिक जे जेराई थानकई जेहना प्रभाव छइ, तेहना प्रभाव कहया, अनइ जेणइ जेणइ पर्वत शाश्वती प्रतिमा छई ते इं-तेराई डुंगरि जे जे देवता बसई छई, तेहना प्रभाव वीतरागे का परिण प्रतिमा ना प्रभाव न कहिया । अनइ हवड़ां तु लोक प्रतिमाना गाढ़ा धरणां प्रभाव कहई छ इं, परिण श्री वीतरागे कांई प्रभाव न कह्या । जु कांई प्रतिमाना प्रभाव हु तउ इहांई प्रभाव कहत । जून ! जो कोई प्रकृतिभद्रक मनुष्य, तेहनु प्रभाव कह युं, तउ प्रतिमानउ प्रभाव स्यइं न कहिउ ? डाहु हुई ते विचारी जोज्यो । एह नवमु बोल । दसमु बोल : हवइ दसमु बोल लिखीइ छइ । तथा श्री सिद्धान्त मांहि श्री वीतराग देवई साधुन श्रावकनई सम्यग्दृष्टी नई केहि प्रतिमा आराध्य न कही । अनइ जि वारई प्रतिमाना थापक कन्हई पूछीइ तिवारई सूरिनाभिदेवताना आलापा देखाइ | सूरिभिदेवताइं परिण मोक्षनइ खातइ प्रतिमा नथी पूजी, ते अधिका अधिकार लिखी छइ । जिहां सूरिप्राभदेवता इं श्री वीतराग वांद्या तिहां एहवु कहिउं - "ए मे पेच्चा हिताते सुहाए, खमाए, गिस्सेसाए, आणु गामित्ताए भविस्सइ ।" तु जुनोनई, जिहां वीतराग वांद्या तिहां पेच्चा कहितां परभवे 'हिमाए सुहाए' कहिउं । अनइ जिहां प्रतिमा पूजी तिहां 'पुव्विं पच्छा' कहिउं परिण परभवे न कहिउं । सिद्धान्त माहिं जिहां देवताए अथवा मनुष्यइ श्री वीतराग वांद्या, तिहां 'पेच्चा हियाए' अथवा 'इहभवे परभवे हिमाए' कहिउं परिण किह्यांइ "पुव्विं पच्छा हिलाए सुहाए" न कहिउं । अनइ जिहां प्रतिमा पूजी तिहां - “पुव्विं पच्छा हिलाए सुहाए" कहिउं । परिण किहांइ "पेच्चा" अथवा "परभवे हिलाए " न कहिउं । परण ईं कारणइ प्रतिमा मोक्षनइ खातइ नथी । जिम भगवती सूत्र मध्ये बीजे शतके खंदक नइ प्रलावइ १०. हू अधिकार प्राजू कह्या छई, ते लिखीइ छइं- "जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छिता समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो प्रायाहिणं पयाहिणं करेंति । करेइत्ता जाव नमसित्ता एवं वयासी - " प्रालित्तणं भंते लोए, पलित्ते णं भंते लोए प्रात्तिपलित्ते णं भंते लोए, जरा - मरणेण य से जहानामए केइ गाहावइ श्रागारंसि -भाग ४ यायमाणंस से जे तत्थ भंड़े भवइ अप्पसारे मोल्लगुरुए तं गहाय प्रायासे एगंतमंत arraft एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुराए हिश्राए सुहाए खमाए निस्सेसाए आगामित्ताए भविस्सइ, एवमेव देवारगुप्पिया मज्झ वि श्राया एगे भंड़े, इट्ठ े कंते fur मरणे मरणा घेज्जे विस्सासिए संमए बहुमए अरणुमए भंडकरंडसमाणे, माणं सी, माणं उन्हं, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, मा णं चोरा, माणं बाला, मा णं दंसा, मा णं मसगा मा णं वाइपित्तिप्रसंभिसन्निवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कट्टु एस नित्थारिए समाणे समाणे परलोस्स हिआए सुहाए खमाए, नीसेसाए आरगुगामियत्ताए भविस्सइ ।" इहांइ खंदकइं श्री महावीर नई इम कहिउं । जिम एक को एक गृहस्थनइ धरि आगि लागु हुइ ते घर नुं धरणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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