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________________ ६६२ [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ नी अर्चा कीधीं” एतलु ज दीसइ छइ, पणि 'जिणघरे' इत्यादिक बोल कह्या नथी। हवड़ां जे प्रति प्रवर्तइ छइ, अनइ ते प्रतिविचालइ अांतरां घाढ़ा धरणां दीसइ छइं डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो। तथा केतलाएक इम कहई छइं-जे द्रुपदी ई नारदनई इम कहिउं जे "असंजयअविरए" इत्यादि । श्रे बोल सम्यग्दृष्टी विवेक कुण जाणइ । ते बोल मिथ्यात्वीइ, गौतमस्वामीनइं परिण इम कहिया छइ । ते लिखीइ छइ--"तएणं ते अन्नउत्थिा जेणेव भगवं गौअमे तेरगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोमं एवं वयासी- "तुन्भे णं अज्जो तिविहं तिविहेणं असंजय अविरय-पडिहय पच्चखायपावकम्मे सकिरिए, असुवुड़े एगंतदंडे एगंतबाले प्रावि भवह ।" एहवा बोल कह्या छई । श्री भगवतीसूत्रनइ अढारमा शतकनइ आठमई उद्देसइं छइ । तथा स्थविरनइ परिण मिथ्यात्वीइं एहवा बोल कह्या छइं । “तए णं ते अन्नऊत्थिया जेणेव थेरा भगवंता, तेणेव उवागच्छंति । ते थेरे भगवंते एवं वदासि-तुन्भे णं अज्जो तिविहं तिविहेणं असंजय अविरय पड़हय इत्यादि जहा सत्तमसए जाव एगंतबाले आवि भवह।" श्री भगवती सूत्रनइ आठमा शतकनइ सातमइ उद्देसइ छइ । तु जोउनइ मिथ्यात्वी 'असंजए अविरए" इत्यादि बोल जाणइ छइ । एह सातमु बोल । ८. पाठमु बोल : हवइ आठमु बोल लिखीइ छइ। तथा श्री वीतरागदेवई सिद्धान्त मांहि साधु चारित्रियानइ श्री ठाणांग मध्ये पंच महाव्रतनां पाल्या ना फल तथा श्री उत्तराध्ययन चउवीसमा मध्ये पांच समिति त्रिणि गुप्तिनां फल, तथा अध्ययन २६ मइ दश विध सामाचारी नां फल, फ्रासुक आहार दीधानां फल, श्री भगवती मध्ये बारे भेदे तप कीधा ना फल त्रीसमइ अध्ययनइ, दशविध वेश्रावच्च नां फल बोल्या श्री ठाणांग मध्ये, तथा विनय कीधां नां फल, अध्ययन पहिलइ तथा अध्ययन ३१ मइ चारित्र पाल्या नां फल, तथा ओगुणत्रीसमइ अध्ययनइ बोल घणां ना फल बोल्यां, तथा श्रावकनई बार व्रत पाल्या नां फल श्री उववाइ उपांग तथा सामाइय चउवीसत्थरो इत्यादि आवश्यकनां फल अनुयोगद्वार मध्ये, तथा श्रावकनई जु साधु चारित्रीआ वंदनीक छइं तु साधुनइ वांद्या नां फल, तथा साधु नी पर्युपास्ति कीधानां फल तथा अन्न पाणी दीधांनां फल तथा उपाश्रय दीधानां फल, तथा वस्त्र पात्र दीधानां फल इत्यादि । जउ तीर्थंकरदेव गणधर प्राचार्य उपाध्याय साधु जउ आराध्य छइ तु तेहना घणी-घणी परि नां फल श्री सिद्धान्त मांहिं कह्यां छई अनइ जउ प्रतिमा मोक्षमार्गमांहि आराध्य नथी तु किहां सिद्धान्त मांहि प्रासाद कराव्याना, प्रतिमा घड़ाव्यानां, प्रतिमा भराव्याना, तथा प्रतिमा पूज्यांना तथा प्रतिमा प्रतिष्ठ्याना, तथा प्रतिमा वांद्या नां तथा प्रतिमा आगलि ढोयानां फल तथा प्रतिमा आगलि भावना भाव्याना फल इत्यादि-घणां वानां लोक प्रतिमा आगलि करइ छइ पणि ते एकइ बलिना फल सूत्रइ श्री वीतराग देवे नथी कह्या। तउ जोउनइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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