SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 674
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह [ ६५५ "अम्हो एह नई दीक्षा दीधी नथी, एह नई माथइ चोटी, एह नई पाठ अनेरू प्रावइ छइ"--एहवा कपट करवा कह्या छइ, तु ते सर्व प्रमाण किम कीजइ ।।३३।। तथा बीजा बोल केतला एक विघटता छइ, ते भरणी नियुक्ति चउद पूर्वधर नी भाषी किम सद्दहीइ ? ते भणी डाहइ मनुष्य इ सिद्धान्त ऊपरि रुचि करवी, जिम इह लोकई-परलोकई सुख उपजइ सही ।।३४।। छः . अनइ पन्नवणां नी वृत्ति नइ करणहारइ "पाउत" शब्द नुअर्थ कारणफलाव्यु छइ ने मोट इ कारण इं झूठू बोलवु जिम निशीथ चूणि मध्ये पंच महाव्रत ना कारण कह्यां छइ, ते महाव्रत प्रार्थवा नां कारण ॥ इति ए सर्व लुकामती नी युक्ति लिखी छइ॥ प्रतिमा मानइ तेहनइ तो पंचांगी प्रमाण इ-सर्व युक्ति प्रमाण छइ । जाणवा ने हेतइं लिख्यु छइ ।' - श्री लोकाशाह ना अट्ठावन बोल १. पहिलु बोल : श्री सिद्धान्त मांहिं मोक्षमार्ग नु मूल कारण श्री सम्यक्त्व छइ । जेहनइ सम्यक्त्व तेहना तप नियम सर्व प्रमाण । ते सम्यक्त्व श्री आचारांग नइ चउथइ श्री सम्यक्त्व अध्ययनइ लाभइ । ते अध्ययन लिखिइ छइ : “से बेमि जे अ अतीता जे अपडुपन्ना जे अ आगमिस्सा अरहंता भगवंता ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं सव्वे परूवेंति । सव्वेपारणा भूप्रा, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता न हंतव्वा न अज्झावेअव्वा, न परिघेतव्वा, रण परितावेअव्वा, ण उद्दवेअव्वा, एस धम्मे सुद्धे, णितिए सासए, समेच्च लोअं खेयन्नेहिं पवेइए, तं जहा:- उठ्ठिएसु वा, अणुट्ठिएसु वा उवट्ठिएसु वा प्रणवट्ठिएसु वा, उवरयदंडेसु वा प्रणवरयदंडेसुवा, सोवहिएसु वा अरणोवहिएसु वा, संजोगरएसु वा, असंजोगरएस वा, तव्वंतं, तहावेतं, अस्सिंवेतं पवुच्चइ । तं आइन्नु ण णिहे ण णिक्खेवे । जाणित्तु धम्म जथा तथा दिट्ठीहिं णिचैनं गणेज्जा । णो लोगस्सेसणं चरे । जस्स पत्थि इमा णाती अन्ना तस्स को सिया। दिढ सुतं मयं विनायं जं एयं परिकहिज्जइ । समेमारणा पलेमाणा पुणो-पुणो जाति पकप्पेंति । अहो अ राम्रो अजयमाणे, धीरे सया आगयपन्नाणे, पमत्ते वहिया पास अपमत्ते सया परिक्कमिज्जासि त्ति बेमि ।' १. एक प्राचीन हस्तलिखित प्रति की फोटो कापी से उद्धृत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy