________________
सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
जैन संघ की स्थिति
।
६२६.
سه
م سه م
ع
م
و مہ مہ
ہ
५३. मंडाहड रत्नपुरीय गच्छ ५४. मल्लघारगच्छ
राजगच्छ ५६. रामसेनीय गच्छ ५७. रुद्रपल्लीय गच्छ ५८. वायट गच्छ ५६. विजयगच्छ ६०. विद्याधर गच्छ ६१. वीरागच्छ ६२. वृत्राणगच्छ ६३. वृद्ध थारापद्रीय गच्छ ६४. सति शालिगच्छ ६५. साधु सार्द्ध पूर्णिमागच्छ ६६. सिद्धान्तीगच्छ ६७. सीतरगच्छ ६८. सुविहित पक्षगच्छ ६६. सौधर्मगच्छ ७०. संडेर गच्छ ७१. हर्षपुरीय गच्छ ७२. हारीजगच्छ
ہ
ہ
ر م
م
م
م
م
م
م
दिगम्बर संघों के लेखों की सूची:
ه
م
१. काष्ठा संघ २. नन्दितट गण ३. देवसेन संघ ४. बलात्कारगरण ५. बागडगच्छ ६. माथुर संघ ७. मूल संघ ८. लाडबागड संघ ६. सरस्वतीगच्छ
م س ام سه
م له
ر
इस प्रकार एक ही पुस्तक में श्वेताम्बर परम्परा के बहत्तर (७२) और दिगम्बर परम्परा के ९ (नौ) प्रतिष्ठालेखों का कुल मिलाकर ८१ गच्छों, गणों एवं संघों का उल्लेख है। इनमें चैत्यवासी परम्परा के चौरासी गच्छों को सम्मिलित कर दिया जाय तो इन गणों-गच्छों की संख्या १६५ हो जाती है। मथुरा के कंकाली
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org