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________________ ६१२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ वि० सं० १४६३ से १५३० तक युग प्रधानाचार्य पद पर रहे, तब तो लौंकाशाह का भी उनसे साक्षात्कार होना चाहिये था-इस शंका के सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि स्वयं लौंकाशाह के जन्म, जन्म-स्थान, माता पिता का नाम, उनकी कृतियां, उनकी जीवन-चर्या, स्वर्गारोहण काल आदि उनके जीवन के अधिकांश महत्वपूर्ण तथ्य अभी तक प्रामाणिक रूप से प्रकाश में नहीं आये हैं । इस प्रकार की धूमिल स्थिति में कोई निश्चित रूप से यह कह सकने में सक्षम नहीं है कि लोकाशाह का महत्तर विशाख गणी के साथ साक्षात्कार हुआ अथवा नहीं। तित्थोगाली पइन्नय और निशीथ की प्रशस्ति से यह तो निर्विवाद रूप से सिद्ध होता है कि वीर निर्वाण सम्वत् २००० तदनुसार वि० सं० १५३० तक विशाख गणि विद्यमान थे। . तित्थोगाली पइन्नय में उल्लिखित विशाख मुनि के प्राचार्य काल (विक्रम सम्वत् १४९३-१५३०) और निशीथ में उपर्युद्धत प्रशस्ति के साथ-साथ लौंकाशाह की विद्यमानता के सम्बन्ध में लौकाशाह के प्रतिपक्षियों एवं अनुयायियों द्वारा किये। गये उल्लेखों पर विचार करने पर सहज ही यह आशंका बड़े प्रबल वेग से प्रत्येक शोधार्थी के मानस में तरंगित होती है कि सम्भवतः विशाखगणी के युग प्रधानाचार्य काल में ही लौंकाशाह हुए हों। पर इस आशंका अथवा अनुमान को वास्तविकता का परिधान पहनाने वाला कोई प्रमाण उपलब्ध साहित्य में अद्यावधि दृष्टिगोचर नहीं होता । "तित्थोगाली पइण्णय" जैसे प्राचीन ग्रन्थ में स्पष्ट उल्लेख है कि वीर निर्वाण सम्वत् २००० में विशाख मुनि का स्वर्गवास हुआ । 'तित्थोगाली पइण्णय' के इस उल्लेख की पुष्टि निशीथ की उपरि चचित प्रशस्ति से होती है कि पुस्तकों के लेखन काल के प्रारम्भ होने से लेकर विक्रम सम्वत् १५३० के बीच के समय में महत्तर विशाखगरणी नामक श्रुतज्ञान के भण्डार एवं विशुद्ध क्रियानिष्ठ महान् प्राचार्य हुए । अन्य उल्लेखों के अभाव में भी इन दो उल्लेखों को दृष्टिगत रखते हुए भी यह न मानने का तो कोई कारण ही नहीं रह जाता कि वीर निर्वाण सम्वत् २००० के पूर्ववर्ती चार दशकों में विशाखगणी नामक आचार्य हुए। निशीथ की प्रशस्ति से केवल यही प्रमाणित होता है कि महत्तर विशाखगणी नामक महान् श्रुतनिधि प्राचार्य हुए। किस समय में हुए इस प्रकार का कोई उल्लेख नहीं है। विशाखगणि के अस्तित्व का उल्लेख उपलब्ध हो जाने पर मुख्य प्रश्न यही रह जाता है कि वे कब हुए। इस प्रश्न का उत्तर खोजते समय हमारी दृष्टि वीर निर्वाण सम्वत २००० से पूर्व से लेकर चिर अतीत में हए. श्रमण भगवान् महावीर की परम्परा के सभी गणों एवं गच्छों में हुए आचार्यों के नामों का विहंगावलोकन करते हुए पुनः पुनः उड़ानें भरती हैं। श्वेताम्बर परम्परा की उपलब्ध पट्टावलियों में तो कहीं विशाखगणी अथवा विशाख मुनि का नामोल्लेख दृष्टिगोचर नहीं होता । हां, दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थों हरिवंश पुराण, धवला, तिलोयपण्णत्ती, उत्तरपुराण, जम्बूद्वीप पण्णत्ती, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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