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________________ स्वर्ग ४२वें (बयालीसवें) युगप्रधानाचार्य श्री सुमिरण मित्र जन्म वीर निर्वाण सम्वत् १८१० दीक्षा वीर निर्वाण सम्वत् १८२२ सामान्य साधुपर्याय वीर निर्वाण सम्वत् १८२२ से १८४० युगप्रधानाचार्य काल वीर निर्वाण सम्वत् १८४० से १६१८ गृहस्थ पर्याय बारह (१२) वर्ष सामान्य साधुपर्याय अठारह वर्ष युग प्रधानाचार्यपर्याय ७८ वर्ष वीर निर्वाण सम्वत् १६१८ सर्वायु १०८ वर्ष ४१वें युग प्रधानाचार्य रेवतीमित्र के स्वर्गस्थ हो जाने पर श्री सुमिणमित्र नामक श्रमणवर को ४२वें युगप्रधानाचार्य के रूप में पट्ट पर आसीन किया गया । 'दुस्समा समणसंघ थयं' के 'यन्त्रानुसार' आपका स्वर्गवास वीर नि० सं० १९१८ में, १०८ वर्ष की आयु पूर्ण करने के अनन्तर हुआ। 'तित्थोगाली पइण्णय' में 'सूत्र कृताङ्ग' के ह्रास अथवा विच्छेद के सम्बन्ध में निम्नलिखित गाथा उपलब्ध होती है : भारद्दायसगोत्ते, सूयगडंगं महासमणनामे । अगुणव्वीससतेहिं, जाही वरिसारण वोच्छित्ति ।।८१६॥ इस गाथा में यह बताया गया है कि वीर नि० सं० १६०० में महासमण (महा सुमिरण) नाम से विख्यात श्रमरण के स्वर्गस्थ हो जाने पर सूत्रकृतांग का व्यवछेद अर्थात् ह्रास हो जायगा । युगप्रधानाचार्य पट्टावली के अनुसार श्रमणोत्तम श्री सुमिणमित्र वीर नि० सम्वत् १८४० से १६१८ तक युगप्रधान पद पर रहे। इस प्रकार की स्थिति में यह एक शोध का विषय है कि इन दोनों प्रामाणिक एवं प्राचीन ग्रन्थों में उल्लिखित सुमिणमित्र और महासमण (महासुमिरण) नामक मुनि दो भिन्न-भिन्न श्रमणवर थे अथवा एक ही। इन दोनों श्रमणोत्तमों के स्वर्गस्थ होने के समय का जहां तक सम्बन्ध है १८ वर्ष का अन्तर लिपिक के दोष से भी सम्भव है । पूर्ण प्रयास के उपरान्त भी एतद्विषयक कोई प्रमाण न मिलने के कारण, सुनिश्चित रूप से कुछ भी कहने की स्थिति में हम अपने आपको नहीं पाते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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