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________________ जन्म दीक्षा श्रमरण भ. महावीर के ५६ वें पट्टधर श्रा. श्री गजसेन आचार्यपद स्वर्गारोहण गृहवास पर्याय सामान्य साधु पर्याय आचार्य पर्याय पूर्ण संयम पर्याय पूर्ण आयु वीर नि० सं० १७२१ १७४४ १७७६ १८०६ २३ वर्ष ३५ वर्ष २७ वर्ष ६२ वर्ष ८५ वर्ष Jain Education International 23 37 श्रमण भगवान् महावीर की मूल परम्परा के ५५वें आचार्यश्री जीवराज जी के समाधिपूर्वक वीर नि. सं. १७७९ में स्वर्गस्थ हो जाने के अनन्तर चतुर्विध धर्म संघ ने श्रमरणश्रेष्ठ श्रागममर्मज्ञ श्री गजसेन मुनि को भगवान महावीर के ५६वें पट्टधर आचार्यपद पर अधिष्ठित किया । 11 आपने अपने ३५ वर्ष की सामान्य साधु पर्याय में आगमों का तलस्पर्शी अध्ययन करते हुए, विशुद्ध श्रमणाचार के पालन के साथ-साथ श्रमरण भगवान महावीर की मूल (परम्परा) अध्यात्म परायणा भाव परम्परा का विभिन्न क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार किया । For Private & Personal Use Only वीर नि. सं. १७७९ में प्राचार्यपद पर आसीन होने के पश्चात् प्रापने अपने श्रमरण-श्रमणी वर्ग को शास्त्रों का तलस्पर्शी ज्ञान करवाया और श्रावकश्राविका संघ को व्रत - नियम - प्रत्याख्यान, स्वाध्याय, सुपात्र - दान, अभय-दान आदि की प्रेरणा देकर जिनशासन की महिमा को बढ़ाया । ८५ वर्ष की आयु पूर्ण कर 'आपने वीर नि. सं. १८०६ में समाधिपूर्वक स्वर्गारोहण किया । www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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