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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] तपागच्छ [ ५८७ विजयसूरि के दर्शनों की उत्कट अभिलाषा उत्पन्न हुई। बादशाह ने गुजरात के प्रशासक शिताब खान के नाम फरमान और हीरविजयसूरि के पास विनन्तिपत्र भेजकर हीरविजयसूरि के दर्शनों की अपनी आन्तरिक इच्छा प्रकट की। बादशाह के फरमान को देखते ही गुजरात का सूबेदार शिताब खान सिहर उठा। हीरविजयसूरि के साथ उसने जो अनेक बार दुर्व्यवहार किये थे, उसके लिए उसने सूरिजी से पुनः पुनः क्षमायाचना की। हीरविजयसूरि गुजरात से विहार कर फतहपुर सीकरी पहुंचे। अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बड़े सम्मान के साथ आमन्त्रित किया। हीरविजयसूरि के उपदेशों को सुनकर अकबर बड़ा प्रसन्न हुआ। सूरिजी के परामर्श को मानकर उसने खाने के लिए एकत्र किये गये अनेक जाति के हजारों पक्षियों को पिंजरों से मुक्त कर दिया। सूरिजी के उपदेश से अकबर ने जजिया कर और तीर्थ-स्थानों में यात्रियों से वसूल किया जाने वाला 'मूडका' कर बन्द कर दिया। सूरिजी के उपदेश से प्रभावित होकर अकबर ने अपने सुविशाल साम्राज्य में अनेक बार अमारियों (अभयदान) की भी घोषणाएं करवाई। हिन्दवा सूर्य के विरुद से विभूषित महाराणा प्रताप ने भी वि० सं० १६३५ की आश्विन शुक्ला पंचमी गुरुवार के दिन हीरविजयसूरि की सेवा में एक पत्र भेजकर उन्हें उदयपुर पधारने की प्रार्थना की। तत्कालीन मेवाड़ी भाषा में महाराणा द्वारा हीरविजयसूरि को लिखवाये गये उस पत्र की प्रतिलिपि निम्न प्रकार है : "स्वस्ति श्री मगसुदा नग्र महाशुभस्थानै सरब औपमा लाग्रंक भट्टारकजी महाराज श्री हीरविजयसूरि जी चरण कमलां अणे स्वस्त श्री वजेकटक चाउंड रा डेरा सुथाने महाराजाधिराज श्री राणा प्रतापसिंह जी की पगे लागणो बंचसी। अठारा समाचार भला है आपरा सदा भला छाइजे। आप बड़ा है, पूजनीक है, सदा करपा राखे जीसुससह (श्रेष्ठ) रखावेगा अप्रं आपरो पत्र अरणा दना म्हे प्राया नहीं सो करपा कर लखावेगा। श्री बड़ा हजर री बगत पदारवो हवो जीमें अठासू पाछा पदारता पातसा अकब्रजी ने जेना बाद म्हे ग्रानरा प्रतिबोद दीदो जीरो चमत्कार मोटो बताया जीवहंसा छरकली (चिड़िया) तथा नाम पखेरू (पक्षी) वेती सो माफ कराइ जीरो मोटो उपगार किदो सो श्री जैन रा धर्म में आप असाहीज अदोतकारी अबार की सै (समय) देखतां आप जू फेरवे न्हीं प्रावी पूरव ही हीदुसस्थान अत्रवेद गुजरात सुदा चारु हसा म्हे धर्म रो बड़ो प्रदोतकार देखाणो, जठा पछे आपरो पदारणो हुवो न्हीं सो कारण कही वेगा पदारसी आगे सु पटा प्रवाना कारण रा दस्तुर माफक आप्रे हे जी माफक तोलमुरजाद सामो प्रावो सा बतरेगा श्री बड़ा हजुर री बखत प्राप्री मुरजाद सामो आवा री कसर पड़ी सुणी सो काम कारण लेखे भूल रही वेगा जीरो अंदेसो नहीं जाणेगा। आगेसु श्री हेमा आचारजी ने श्री राम्हे मान्या हे जीरो पटो कर देवारणो जि माफक अरो पगरा. भटारख गादी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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