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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
तपागच्छ
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१४. डाडा
१८.
१३. आदान निक्षेपणा समिति पालवा माटे पोतानी उपधि प्रमुख पूजी-प्रमार्जी
ने भूमि पर स्थापन करू,तेमज भूमि ऊपर थी लऊ। पूजवा-प्रमार्जवा मां गफलत थाय तो त्यांज नवकार गणु । डांडो प्रमुख पोतानी उपधि ज्यां त्यां मुकी देवाय ता ते बदल एक आयंबल करू, अथवा ऊभा ऊभा काउसग्ग मुद्राए रही एक सौ गाथा न सज्झाय
ध्यान करू । १५. पारिठावणिया समिति पालवा माटे स्थंडिल, मात्रुके खेलादिक (श्लेष्मा
दिक) नुभाजन परठवतां कोई जीव नो विनाश थाय तो नीवी करू अने सदोष आहारपाणी प्रमुख वहोरी ने परठवतां आयंबिल करू। स्थंडिल, मात्रु विगेरे करवाना के परठववाना स्थाने "अणुजाराह जस्सु
ग्गहो” प्रथम कहुं अने परठविया पछी त्रणं बार "वोसिरे" कहुं । १७. मन गुप्ति, वचनगुप्ति पालवा माटे मन अने वचन रागाकुल थाय तो हुं
एकेक नीवी करू अने काय कुचेष्टा थाय तो उपवास के आयंबिल करू । अहिंसा व्रते प्रमादाचरण थी मारा थी बेइन्द्रिय प्रमुख जीवनी विराधना थई जाय तो तेनी इन्द्रियो जेटली निवी करू । सत्य व्रते क्रोध, लोभ, भय
अने हास्यादिक ने वश थइ झूठू बोली जाऊं तो आयंबिल करू । १६. अस्तेय व्रते पहेली भिक्षा मां आवेला जे घृतादिक पदार्थो गुरु महाराज ने
देखाड्या विना ना होय ते वापरू नहीं अने डांडो, तर्पणी विगेरे बीजा नी
रजा वगर लऊ के वापरू नहीं अने लऊं के वापरू तो आयंबिल करू । २०. ब्रह्मव्रते एकली स्त्री साथे वार्तालाप न करू अने स्त्रीरो ने स्वतन्त्र भरणा
वुनहीं । परिग्रह विरमण व्रते एक वर्ष चाले एटली उपधि राखु, पण तेथी वधारे राखु नहीं । पात्रा काचलां प्रमुख पन्दर उपरान्त नज राखु । रात्रिभोजनविरमरण व्रते अशन, पान, खादिम, स्वादिम नी लेशमात्र सन्निधि
रोगादिक कारणे पण करू नहीं। २१. महान् रोग थयो होय तो पण कवाथ नो उकालो न पीऊ, तेमज रात्रे
पाणी पीऊं नहीं । सांझे छेली बे घड़ी मां जलपान न करू। सूर्य निश्चे देखाते छतेज उचित अवसरे सदा जलपान करी लऊं अने सूर्यास्त पहेलां ज सर्व आहार ना पचक्खाण करी लऊ अने प्रणाहारी औषध नी
सन्निधि पण उपाश्रय मां राखु-रखावू नहीं । २३. तपाचार यथाशक्ति पालुएटले छट्ठादिक तप करियो होय तेमज योग
वहन करतो होऊ, ते विना अवग्रहित भिक्षा लऊ नहि । लाग लागां बे आयंबिल के त्रण नीवी कर्यां वगर हं विगय (दूध, दही, घी
प्रमुख) वापरू नहीं अने विगय वापरू ते दिवसे खांड प्रमुख साथे मेलवी . ने नहीं खावानो नियम जावज्जीव पालु।
२४.
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