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________________ ५६८ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ इस पट्टावली में इसके लेखन काल का भी कोई उल्लेख नहीं है और न अमरसिंहसूरि के पश्चात् किसी प्राचार्य का नामोल्लेख ही । इससे यही तथ्य प्रकाश में आता है कि इस पट्टावली का आलेखन अमरसिंहसूरि के प्राचार्यकाल में किया गया। बारहवें श्लोक के तृतीय चरण में “सन्ति"--इस शब्द को देखने से यह स्वतः ही सिद्ध हो जाता है कि अमरसिंहसूरि की विद्यमानता में ही इस पट्टावली की रचना की गई। उपरिवरिणत नौ आचार्यों में से केवल प्राचार्यश्री अमरसिंह को छोड़ किसी के न तो प्रतिमा लेख उपलब्ध होते हैं और न प्रशस्तिपरक लेख ही। इस प्रकार की स्थिति में शीलगणसूरि से लेकर अभयसिंहसूरि के समय के सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अमरसिंहसूरि के कुल मिलाकर ६ प्रतिमा लेख उपलब्ध होते हैं जो विक्रम सम्वत् १४५१ और १४७८ की अवधि के बीच के हैं । इससे यह अनुमान किया जाता है कि इस पट्टावली का लेखन विक्रम सम्वत् १४७८ के आस-पास किया गया हो। इन प्रतिमा लेखों से और आचार्यश्री यशोदेव के दीक्षा काल, आचार्यपद '. प्रदान काल और उनके द्वारा विक्रम सम्वत् १२१४ में आगम पक्ष की स्थापना सम्बन्धी इसी पट्टावली के पूर्व चचित उल्लेख से यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आगमिकगच्छ के प्रथम प्राचार्य शीलगणसूरि से लेकर आठवें आचार्य अभयसिंह तक आठ प्राचार्यों का काल विक्रम सम्वत् १२१४ से लेकर १४५०-५१ के बीच का २३७ वर्ष का रहा । अमरसिंहसूरि के पश्चात् उनके पट्टधर हेमरत्नसूरि हुए। यह प्रतिमा लेखों से ज्ञात होता है। आगमिकगच्छ के दसवें प्राचार्य इन हेमरत्नसूरि से सम्बन्धित लगभग पन्द्रह प्रतिमा लेख 'शिलालेख संग्रह' में उपलब्ध होते हैं जो विक्रम सम्वत् १४८४ से १५२१ तक की ३७ वर्ष की अवधि के हैं। प्रतिमा लेखों से एवं ग्रन्थों की पुष्पिकाओं से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि हेमरत्नसूरि के पश्चात् और उनके समय में आगमिकगच्छ में धंधुकिया शाखा, बिडालम्बिया शाखा, आदि इस गच्छ की शाखाओं के प्राचार्यों एवं मुनियों से सम्बन्धित प्रतिमा लेख विक्रम सम्वत् १५४६ तक के और पुष्पिका लेख विक्रम सम्वत् १६७८ तक के उपलब्ध होते हैं। आगमिकगच्छ के प्राचार्यों से सम्बन्धित इन प्रतिमा लेखों को देखने और उन पर शोध परक दृष्टि से विचार करने पर एक बड़ा ही आश्चर्यकारी तथ्य प्रकाश में आता है कि इस गच्छ की उपरिलिखित पट्टावली के अन्त में जिन अमरसिंहसूरि का नाम दिया गया है उनसे पहले के आठ प्राचार्यों के समय का एक भी प्रतिमा लेख अभी तक कहीं देखने में नहीं आया है। इस स्थिति में यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या अमरसिंहसूरि से पूर्ववर्ती आचार्यों के तत्वावधान में एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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