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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ 1
आगमिकगच्छ
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इन तीनों आचार्यों के सम्बन्ध में पट्टावलीकार ने निम्नलिखित दो श्लोकों में इनका नाममात्र का परिचय दिया है
अर्थात् श्री जिनचन्द्रसूरि के पट्ट पर विजयसिंहसूरि आसीन हुए, जो बड़े ही विख्यात एवं आगम मर्मज्ञ थे । उनके पश्चात् अभयसिंहसूरि उनके पट्ट पर आसीन हुए। वे बड़े वाद निष्णात थे और सदा शास्त्रार्थ में विजयी रहे । अमरसिंह सूरि के स्वर्गस्थ होने के अनन्तर उनके पट्ट पर अभयसिंहसूरि विराजमान हुए। ये श्रागमिकगच्छ के मुख्य प्रभावक प्राचार्य हुए । इस समय उनके कृपाकांक्षी अमरसिंहसूरि हैं ।
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तत्पदे विजयसिंह सूरयो विश्रुता श्रुतविचारभूरयः । वाग्मिनो विजयिनोऽथ तत्पदे भेजिरे चाभयसिंह सूरयः ॥ ११॥ श्रीमदागमिक मुख्य वंशजा सूरयः समभवन्निमे सने । संति तत्पदकृपोपजीविनः श्रीयुता अमरसिंह सूरयः ॥ १२ ॥
आगमि गच्छ की पट्टावली के उपसंहार के रूप में पट्टावलीकार ने निम्नलिखित अन्तिम श्लोक दिया है
१.
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अर्थात् आगमिकगच्छ के पांचवें पट्टधर प्राचार्यश्री सर्वानन्द के समय में अभयदेवसूरि और वज्रसेनसूरि नामक जो दो प्राचार्य हुए थे उन दोनों प्राचार्यों की शाखाएं कलिकाल के प्रभाव से आज नाममात्र के लिये लुप्तप्रायः सी विद्यमान हैं ।
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श्री अभयदेव सूरे: श्री सूरे वज्रसेन नाम्नोऽपि । कलिविलसितेन सम्प्रति, जाते शाखे असत्प्राये ||१३||
इस तेरहवें श्लोक के साथ ही प्रागमिकगच्छ की यह पट्टावली समाप्त हो जाती है । इस पट्टावली में कतिपय सूचनाएं बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं किन्तु इसमें एक आचार्य को छोड़ शेष किसी का समय उल्लिखित नहीं होने के कारण इसका ऐतिहासिक महत्व कम हो जाता है । इस पट्टावली में केवल यशोदेवसूरि के दीक्षित होने का समय विक्रम सम्वत् १९६६, इनके प्राचार्यपद पर आसीन होने का समय विक्रम सम्वत् १२१२ तथा इनके द्वारा श्रागम पक्ष की स्थापना का समय विक्रम सम्वत् १२१४ ही दिया गया है। इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी प्राचार्य के गृहस्थ पर्याय, दीक्षा काल, आचार्यकाल आदि का कहीं कोई उल्लेख नहीं है ।
श्री कान्तिविजयजी के भण्डार की प्रति से प्राप्त हुई प्रतिलिपि के आधार पर इस पट्टावली के श्लोक और कुछ अंश यहां उद्धृत किये गये हैं ।
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-सम्पादक
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