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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
प्रागमिकगच्छ
उनके शिष्य प्रागमिक गच्छ के दूसरे प्राचार्य देवभद्रसूरि हुए । सम्भवतः उन्हीं देवभद्रसूरि का उल्लेख यहां किया गया हो और इस प्रकार की स्थिति में पट्टावलीकार ने जो देवभद्रसूरि का देव वन्दन के सम्बन्ध में उल्लेख किया है वे सम्भव है शीलगणसूरि के पट्टधर आगमिक पक्ष के द्वितीय आचार्य देवभद्रसूरि हों। किन्तु इस सम्बन्ध में ठोस प्रमाण के अभाव में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि पट्टावली में शीलगणसूरि के स्वर्गारोहण का और उनके पट्टधर देव भद्रसूरि के प्राचार्यपद पर आसीन होने का समय उल्लिखित नहीं है।
__ शीलगणसूरि के स्वर्गारोहण के अनन्तर आगमिक गच्छ के दूसरे आचार्य श्री देवभद्रसूरि हुए।
२. श्री देवभद्रसूरि :-आगमिक गच्छ के द्वितीय प्राचार्य देवभद्रसूरि के सम्बन्ध में प्रागमिक गच्छ की इस पट्टावली में निम्नलिखित उल्लेख है :
श्री आगमोक्त विधिवर्त्मनि दुर्गमेऽत्र,
यस्यैककस्य चलतोऽजनि यः सहायी। सारागमार्थ विधिवत् घटनापटीयान्,
श्री देवभद्रगुरुरभ्युदयाय तस्मात् ।।३।। अर्थात् सर्वज्ञप्रणीत आगमों में प्रतिपादित विधिमार्ग के पथ पर चलने में शीलगणसूरि के जो प्रबल सहायक हुए वे सकल आगमों के मर्म के ज्ञाता और विधि मार्ग को संसार के समक्ष प्रकट करने में अतीव निपुण देवभद्रसूरि इस आगमिक गच्छ के द्वितीय प्राचार्य हुए।
प्रागमिक गच्छ के इन द्वितीय प्राचार्य देवभद्रसूरि के जीवन के विषय में न तो पट्टावली में ही और न अन्यत्र ही इससे अधिक परिचय उपलब्ध होता है कि वे विधि मार्ग अथवा ग्रागमिक गच्छ के द्वितीय प्राचार्य थे। इसी कारण इनके गृहस्थ पर्याय, मुनि पर्याय, प्राचार्यपद पर्याय एवं स्वर्गारोहण काल के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता । इस श्लोक के तृतीय चरण में इन्हें सकल आगमों का मर्मज्ञ और विधिमार्ग का प्रचार करने में परम निष्णात बताया है। इससे यह कहा जा सकता है कि वे अपने समय के प्रमुख विद्वान् एवं जिनशासन के प्रभावक आचार्य थे । देवभद्रसूरि के स्वर्गारोहरण के पश्चात् आगमिक गच्छ के तीसरे आचार्य धर्मघोषसूरि हुए।
३. श्री धर्मघोषसूरि :-आगमिक गच्छ के तृतीय पट्टधर धर्मघोषसूरि के सम्बन्ध में प्रागमिक गच्छीया पट्टावली में निम्नलिखित उल्लेख है :
ततः श्रुताम्भोनिधिशीतभानु
गोभिविभिन्दन् नितरां तमांसि ।
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