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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
अचलगच्छ
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में वे सर्व प्रथम नमस्कार मंत्र पर विवेचन करते हैं। आपकी आज्ञा प्रसारित हुई है कि पंचमी को पर्वाराधन करने वाले साधु पाटण से विहार कर अन्यत्र चले जांय । हमारे गुरुदेव ने आप से ही पुछवाया है कि वे नमस्कार मन्त्र पर विवेचन विवरण पूर्णतः सम्पन्न करने के पश्चात् पाटण से विहार करें अथवा नमस्कार मन्त्र के विवरण-विवेचन को अधूरा छोड़कर ही पाटण से बाहर चले जांय ।"
__"यह सब कुछ सुनकर कुमारपाल सहसा कुद्ध हुा । किन्तु उसी क्षण वह बड़ी दुविधा में फंस गया। एक ओर तो राजाज्ञा की परिपालना का प्रश्न और दूसरी ओर महामन्त्र नमस्कार मन्त्र के अनुष्ठानपरक विवेचन में भंग का धर्म संकट । अपनी इस दुविधा के समुचित समाधान के लिये कुमारपाल अपने आराध्य गुरुदेव प्राचार्य हेमचन्द्र की सेवा में उपस्थित हुआ। उसने राज्यादेश एवं जयसिंहसूरि के संदेश विषयक विवरण प्रस्तुत करने के पश्चात् हेमचन्द्रसूरि से निर्देश प्रदान करने की प्रार्थना की कि इस प्रकार की दुविधाजनक स्थिति में वह क्या करे ।”
"बड़े ध्यान से राजा की बात सुनने के पश्चात् प्राचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि ने कहा- “राजन् ! विधिपक्ष के प्राचार्य जयसिंहसूरि वस्तुत: बड़े-बड़े दिग्गज तुल्य दिगाकर वादियों को पराजित करने वाले जिनशासन प्रभावक मंत्र तन्त्र आदि विधाओं में निष्णात उद्भट विद्वान् हैं । अतः उनका कोपभाजन बनना किसी के लिये किंचित्मात्र भी श्रेयस्कर नहीं है।"
"प्राचार्य हेमचन्द्र की बात सुनकर महाराजा कुमारपाल तत्काल जयसिंहसूरि के पास उपाश्रय में उपस्थित हुआ। उसने राजादेश सम्बन्धी वस्तु स्थिति रखते हुये जयसिंहसूरि से क्षमा याचना की । जयसिंहसूरि ने कुमारपाल से कहा- "राजन् ! समभाव ही सच्चे श्रमण का सबसे बड़ा धन है। आप पर कुद्ध होने का तो प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। किन्तु धर्म की आगमिक मूल मान्यताओं के सम्बन्ध में आपके अन्तर में जो विचार विपर्यास उत्पन्न हुआ है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि अब सुनिशिचत रूप से आपकी आयु स्वल्प ही अवशिष्ट रह गई है। ऐसी स्थिति में अब तुम्हें धर्म कार्यों में विशेष रूप से संलग्न हो जाना चाहिये।"
__ "जयसिंहसूरि की इस भविष्यवाणी को सुनकर महाराजा कुमारपाल तत्काल हेमचन्द्राचार्य की सेवा में लौटा और जयसिंहसूरि के साथ हुई बातचीत का पूरा विवरण कह सुनाया। निमित्त शास्त्र के विद्वान् प्राचार्य हेमचन्द्र ने भी जयसिंहसूरि के भविष्य कथन पर विचार किया और उसे अक्षरशः सत्य पाया। उन्होंने कुमारपाल से कहा-"राजन् ! जयसिंहसूरि
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