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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
अंचलगच्छ
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संघ को आमन्त्रित करें। इस पर जयसिंहसूरि ने हेमचन्द्राचार्य से कहा कि यदि सभी गच्छ वाले प्राचार्य मिल कर मुझे एक समाचारी बनाने का कहें तो मैं उसके लिये सहर्ष समुद्यत हूं।
वाहक गणि ने जयसिंहसूरि के इस उत्तर का यह अर्थ लगाया कि सभी गच्छों के प्राचार्यों के समक्ष एक ही प्रकार की समाचारी निर्धारित करने के लिये कहना वस्तुतः सोते सांप को जगाने के तुल्य होगा। इस प्रकार के प्रयास से तो सम्पूर्ण जैन समाज में अन्दर ही अन्दर कलह भड़क उठेगा।।
लघु शतपदी के उल्लेखानुसार वाहकगणी ने जयसिंहसूरि को मरवा डालने के लिये कतिपय सशस्त्र लोगों को भेजा। किन्तु वे सभी आक्रमणकारी जयसिंहसूरि के तप और तेज के प्रभाव से स्तम्भित हो पाषाण की तरह निश्चल हो गये।
जयसिंहसूरि को मरवा डालने के लिये किये गये दो षड्यन्त्रों का उल्लेख भावसागरसूरि ने वीरवंश-पट्टावली में भी किया है, जो इस प्रकार है :
तप्पटपउमहंसो, गणाहिवो सूरिराय जयसिंहो । कत्थ वि गाम दुगंतर, गच्छइ परिकरेण जुग्रो ।।११६।। केहि पि गुरु घाउं, संपेसिया भड़सई करे सत्था । जाव समेया तत्थ वि, थंभियभूया तया सव्वा ।।११७।। पिय-माय-बंधवेहिं, गुरुपासे आगएहिं भत्तीए । तइय दिणे पगधोवण, छंटणो मुक्कला जाया ।।११८॥ अन्नय पासत्थेण वि, गुरुहणणत्थं च पेसिया सुहड़ा । विउणप्पि वसइ दुवारे, परुप्परं जुझिया वलिया ॥११६।। तस्स य उयरे वेयण-, संजाया अइबहूपगारेहिं ।
न समइ तत्तो तप्पय, धोयण-पाणउ उवसमिया ।।१२०।। अर्थात्--वि० सं० १२३६ में सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर तिमिर नामक नगर में रक्षितसूरि के स्वर्गस्थ होने के अनन्तर उनके पट्टधर जयसिंहसूरि विहारक्रम से एक दिन किसी गांव की ओर जा रहे थे। किन्हीं लोगों (विरोधियों) ने जयसिंहसूरि को मरवा डालने के लिये कतिपय सशस्त्र आक्रमणकारियों को भेजा। जयसिंह गुरु पर प्रहार करने हेतु वे शस्त्रधारी जब गुरु की ओर बढ़े तो वे सभी स्तम्भित हो पत्थर की मूर्तियों की भांति निश्चल-निश्चेष्ट खड़े के खड़े ही रह गये। जयसिंहसूरि निर्भीक हो अपने लक्ष्यस्थल पर पहुँच गये। विरोधियों द्वारा भेजे गये वे सशस्त्र भट निरन्तर तीन दिन और तीन रात तक विकट वन में उसी भांति स्तम्भित रहे । अन्त में जब उन भटों के माता-पिता आदि पारिवारिक जनों को इस घटना का पता चला तो वे सब मिलकर जयसिंहसूरि की सेवा में पहुंचे और सूरिवर से पुनः पुनः क्षमायाचना करने लगे। उन लोगों ने आचार्यश्री जयसिंहसूरि
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