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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ j अंचलगच्छ
[ ५२६ ग्राम में पहुंचा । उसने नाढ़ी से कहा- "बहिन ! तेरे सम्मान को ठेस पहुंचाने वाले प्राचार्य के श्रावक-श्राविका समुदाय से मुखवस्त्रिका का त्याग करवा कर मैं तेरे उस अपमान का बदला लूंगा। शास्त्रों में श्राद्धवर्ग अथवा श्रावक-श्राविकावर्ग के लिए मुखवस्त्रिका का कहीं विधान अथवा निर्देश तक नहीं है।"
यह सुनकर नाढ़ी (नाथी) बड़ी प्रसन्न हुई और उसने अपने समस्त पारिवारिक जनों के साथ सामूहिक रूप से मुखाग्र पर केवल अंचल रखते हुए ही वन्दन किया।
__ इस प्रकार एक अांख के धनी (काणे) नरसिंह मुनि और दोनों प्रांखों से अन्धी नाढ़ी ने पांचलिक कुमत को प्रकट किया। उस नाढ़ी ने नटीपद्रीय चैत्यवासी आचार्य रक्षितसूरि के हाथों अपने गुरु नरसिंह को बड़े प्राडम्बर के साथ प्राचार्यपद प्रदान करवाया । नाढ़ी ने इस पट्टमहोत्सव में आठ हजार मुद्राएं व्यय की।"
उपाध्याय धर्मसागर ने आगे लिखा है— “इस प्रकार अंचलगच्छ की स्थापना के पश्चात् उस नरसिंहाचार्य ने अपने गच्छ की वृद्धि की लालसा से इकवीस उपवास कर कालिका नाम की एक मिथ्यादृष्टि देवी की आराधना की। उस नरसिंहाचार्य ने लोगों के समक्ष इस प्रकार का झूठा प्रचार किया कि चक्रेश्वरी देवी उस पर प्रसन्न हुई है।
नरसिंहाचार्य ने जो मत प्रकट किया, उसकी उत्सूत्रता (पागम विरोधिता) तो सर्वजन विदित ही है कि उसने श्रावक-श्राविकावर्ग के लिये सर्वप्रथम मुखवस्त्रिका का और तत्पश्चात् सामायिक का भी निषेध किया।"
इस प्रकार प्रांचलिक मत के प्रादुर्भाव एवं उद्भव काल के सम्बन्ध में ये दो प्रकार के मुख्य उल्लेख जैन वांग्मय में उपलब्ध होते हैं। अपने विरोधियों अथवा अपने से भिन्न गच्छ के अनुयायियों के प्रति अति कर्कश, कठोर और नितान्त अशोभनीय शब्दों के प्रयोग उपाध्याय धर्मसागर की 'प्रवचन परीक्षा' नामक कृति में यत्र-तत्र प्रचुर मात्रा में दृष्टिगोचर होते हैं । उपाध्याय धर्मसागर द्वारा अंचलगच्छ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में दिये गये उपरिलिखित विवरण के मुख्य पात्र नरसिंहाचार्य और नाढ़ी (नाथी) का नामोल्लेख तक अंचलगच्छ की पट्टावलियों अथवा एतद्विषयक समग्र जैन साहित्य में अन्यत्र कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता।
उपाध्याय धर्मसागर ने चैत्यवासी प्राचार्य रक्षित द्वारा मुनि नरसिंह को प्राचार्यपद प्रदान किये जाने का जो उल्लेख किया है, वह भी जैन वांग्मय में अद्यावधि अन्यत्र कहीं भी प्रकाश में नहीं आया है। यहां प्रत्येक तथ्यान्वेषी निष्पक्ष विज्ञ विचारक के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण विचारणीय तथ्य यह है कि उपाध्याय श्री धर्मसागर ने अंचलगच्छ के संस्थापक के रूप में जो मुनि नरसिंह का नामोल्लेख
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