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________________ ५०६ ] । जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ भगवान् पार्श्वनाथ के निर्वाण के अनन्तर क्रमशः हुए उनके चार पट्टधरोंप्रथम पट्टधर गणधर शुभदत्त, द्वितीय प्राचार्य हरिदत्त, तृतीय आचार्य समुद्रसूरि और चतुर्थ पट्टधर आचार्य केशी श्रमण का यत्किचित् जीवन परिचय प्रस्तुत ग्रन्थमाला के प्रथम भाग में और छठे आचार्य रत्नप्रभसूरि का परिचय द्वितीय भाग में यथास्थान दिया जा चुका है। __ अब यहां उपकेशगच्छ के पांचवें प्राचार्य स्वयंप्रभ और सातवें प्राचार्य से ७२वें आचार्य तक का इस गच्छ की पट्टावली में यथोपलब्ध क्रमिक परिचय यहां दिया जा रहा है : ५. प्राचार्य स्वयंप्रभसूरि-आपका जन्म विद्याधर वंश में हुआ था। प्राचार्य केशिकुमार के पास आपने श्रमण धर्म की दीक्षा ग्रहण की। अपने प्राचार्य काल में देश के सुदूरस्थ प्रदेशों में विहार कर आपने अनेकों अजैनों को जैन धर्मावलम्बी बनाया। भगवान् महावीर के प्रथम पट्टधर सूधर्मा स्वामी और द्वितीय पट्टधर जम्बू स्वामी के समय में आपका अस्तित्व माना जाता है। प्राचार्य स्वयंप्रभ उपकेश गच्छीया पट्टावली के अनुसार वीर निर्वाण सम्वत् ५२ में स्वर्गवासी हुए। ६. प्राचार्य रत्नप्रभसूरि-आपका परिचय जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग २ में, पृष्ठ ३७६-३८० पर दिया जा चुका है। पूर्वोल्लेखानुसार आपने प्रोसियां के मृत प्रायः जामाता का विषापहार कर उसे पूर्ण स्वस्थ किया और उससे प्रभावित हो ओसियां निवासी सवा लाख क्षत्रियों ने जैन धर्म स्वीकार किया। उसी चमत्कार पूर्ण घटना की स्मृतिस्वरूप पार्श्वनाथ परम्परा का नाम उपकेशनगर (प्रोसियां) के नाम पर उपकेशगच्छ के नाम से लोक में प्रसिद्ध होना अनुमानित किया जाता है। आपने अपने एक शिष्य कनकप्रभ को कोरंटक में आचार्य पद देकर कोरंटकगच्छ की भी स्थापना की। ७. प्राचार्य यक्षदेवसूरि-उपकेशगच्छ के छठे महान् प्रभावक आचार्य रत्नप्रभ के पश्चात् उनके पट्ट पर सातवें प्राचार्य यक्षदेवसूरि वीर निर्वाण सम्वत् ८४ में प्राचार्य पद पर आसीन हुए। ८. कक्कसूरि । ६. प्राचार्य देवगुप्त । १०. सिद्धसूरि । ११. प्राचार्य रत्नप्रभ (द्वितीय) १२. आचार्य रत्नप्रभ (तृतीय) १. जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग १, प्रथम संस्करण, पृष्ठ ३२७-३२८ २. जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग २, प्रथम संस्करण, पृष्ठ ३७६-८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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