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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] ५४. जिनराजसूरि ५५. जिनभद्रसूरि ( इसी गच्छ के सागर चन्द्राचार्य ने विक्रम सम्वत् १४६९ में जिनवर्द्धनसूरि को ग्रधिष्ठित किया था। जिनवर्द्धनसूरि पर चौथे व्रत (ब्रह्मचर्य व्रत ) के भंग का दोप लगाया गया और उनके स्थान पर जिनभद्रसूरि को पट्टधर बनाया गया । इन्हीं के समय में जिनवर्द्धनसूरि से खरतरगच्छ में एक नई पिम्पलक शाखा का उद्भव हुआ । खरतरगच्छ ५६. जिनचन्द्रसूरि ( इन्होंने अनेक विद्वान् मुनियों को प्राचार्यपद पर अधिष्ठित किया । इनके समय में विक्रम सम्वत् १५०८ में ग्रहमदाबाद में लौंका नामक लेखक ने प्रतिमा पूजा का विरोध किया और वि० सं० १५२४ में लौंका के नाम से मत प्रचलित हुआ । ) ५७. जिनसमुद्रसूरि ५८. जिनहंससूरि ( इनके समय में प्राचार्य शान्ति सागर ने खरतरगच्छ में प्राचार्यया शाखा का प्रचलन किया । ) ६३. जिनरत्नसूरि ६४. जिनचन्द्रसूरि ६५. जिनसुखसूरि ६६. जिनभक्तिसूरि ५६. जिन माणिक्यसूरि ( इनके समय में खरतरगच्छ में शिथिलाचार का प्राबल्य बढ़ा । इन्होंने त्रियोद्धार का दृढ़ संकल्प कर अजमेर की प्रोर विहार करने का निश्चय किया किन्तु देराउल से जैसलमेर लौटते समय वि० सं० १६१२ ग्राषाढ़ शुक्ला पंचमी को आपका स्वर्गवास हो गया और इस प्रकार आपका क्रियोद्धार करने का स्वप्न अधूरा ही रह गया । ) ६०. जिनचन्द्रसूरि ( इन्होंने विक्रम सम्वत् १६१२ में क्रियोद्धार किया । वि० सं० १६२९ में आपके आचार्य काल में भाव हर्षोपाध्याय ने भाव हर्षीया खरतर शाखा को जन्म दिया । आपने अनेक चमत्कारिक कार्य किये और वि० सं० १६७० में आपका स्वर्गवास हो गया । ) ६१. जिनसिंहसूर ६२. जिनराजसूरि ( आपके समय में आपके शिष्य जिनसागरसूरि ने वि० सं० १६८६ में लध्वाचार्य खरतर शाखा को जन्म दिया । आपने नैषध काव्य पर जैनराजीय नाम की एक टीका की रचना की । वि० सं० १६६६ में आपके स्वर्गवास के कुछ ही समय पश्चात् वि० सं० १७०० में रंग विजय गरिण ने रंग विजया शाखा को जन्म दिया और कुछ ही समय पश्चात् श्री सार उपाध्याय ने खरतरगच्छ में श्री सारीय शाखा प्रचलित की । ) Jain Education International [ ५०३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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