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सामान्य श्रृंतधर काल खण्ड २ ]
खरतरगच्छ
कारण है कि दुर्लभराज के समक्ष चैत्यवासियों के साथ हुए जिनेश्वरसूरि के शास्त्रार्थ का विवरण अन्यान्य विभिन्न लेखकों ने एक-दूसरे से भिन्न रूप में दिया है । इस तथ्य का जीता जागता एक बड़ा ही रोचक उदाहरण है प्रभावक चरित्र का एतद्विषयक उल्लेख ।
प्रभाचन्द्रसूरि ने अपनी ऐतिहासिक कृति 'प्रभावक चरित्र' में एतद्विषयक घटनाक्रम के वर्णन में संक्षेप शैली का आश्रय लिया है। वर्द्धमानसूरि ने चैत्यवास का परित्याग करने के अनन्तर कहां पर और कौनसे क्रियापात्र आगम मर्मज्ञ श्रमण श्रेष्ठ के पास सच्चे श्रमण धर्म की उपसम्पदा प्राप्त कर आगमों का तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया आदि अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रभाचन्द्राचार्य ने नाममात्र के लिये भी प्रकाश नहीं डाला है। पाटण में वसतिवास की स्थापना विषयक इस ऐतिहासिक घटना का प्रभावक चरित्र में निम्न रूप में चित्रण किया गया है :
___ "सवालख' (सपादलक्ष) राज्य की राजधानी कूर्चपुर (वर्तमान कुचेरा) में महाराणा अल्ल के पौत्र भुवनपाल नामक नृपति के राज्यकाल में वर्द्धमान नामक चैत्यवासी परम्परा के विद्वान् श्रमणाग्रणी ने जैनधर्म के मर्म रूप वास्तविक स्वरूप का बोध हो जाने पर ८४ चैत्यों की मठाधीशता को ठुकरा कर चैत्यवासी परम्परा का परित्याग कर दिया। उन्होंने अपने शिष्यसमूह में से दो महा मेधावी शिष्य जिनेश्वर और बुद्धिसागर को श्रुतसागर का तलस्पर्शी अध्यापन कराने के पश्चात् प्राचार्यपद प्रदान किया ।"
एक दिन वर्द्धमानसूरि ने अपने उन दोनों सूरि शिष्यों से कहा"चैत्यवासी परम्परा का पाटण राज्य में एकछत्र वर्चस्व है। वहां चैत्यवासी प्राचार्यों ने राजाज्ञा द्वारा अन्य परम्पराओं के साधु-साध्वियों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगवा रक्खा है। इस कारण सुविहित परम्परा के श्रमणों को पाटण राज्य में प्रविष्ट होने पर उनके समक्ष चैत्यवासियों द्वारा अनेक प्रकार की विघ्न-बाधाएं उपस्थित की जा सकती हैं। वर्तमान काल में तुम्हारे समान अद्भुत मेधाशक्ति-सम्पन्न बुद्धिमान् अन्य कोई कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता । तुम दोनों इस प्रकार के राजकीय प्रतिबन्धात्मक आदेश को निरस्त करवाने में सक्षम हो। मेरी आन्तरिक इच्छा है कि तुम दोनों अपने बुद्धि-बल और कौशल से उस निषेधाज्ञा को निरस्त करवाकर सुविहित परम्परा के श्रमण-श्रमणी वर्ग के लिये पाटण राज्य में विचरण एवं धर्म प्रचार का मार्ग खोल दो।"
"जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि ने अपने गुरु के आदेश को शिरोधार्य कर पाटण की ओर प्रस्थान किया । पाटण में उन्हें चैत्यवासियों १. प्रभावक चरित्र, अभय देवसूरि चरित्र ।
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