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________________ ४५० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ अथवा बड़ी सभी प्रकार की संकट की घड़ियों में बड़ी ही उल्लेखनीय सहायताएं प्राप्त होती रहीं। बाहरी आक्रमणों से इन दोनों पिता-पुत्र ने गुजरात की रक्षा की। लवण प्रसाद भीम के शासन के अन्तिम दस वर्षों को छोड़ वि० सं० १२८८ तक लगभग ५३ वर्ष पर्यन्त चालुक्यराज के प्रशासन का प्रधान बना रहा। वि० सं० १२८८ में उसके सेवा निवृत्त होने पर वीर धवल सम्पूर्ण गुर्जर राज्य का एक प्रकार से राजा तुल्य सर्वोपरि शासक बन गया ।२ श्रमण भ० महावीर के ५० वें पट्टधर आचार्यश्री विजयऋषि के प्राचार्यकाल की राजनैतिक स्थिति का संक्षेप में दिग्दर्शन कराते हुए यह बताया जा चुका है कि महमूद गजनवी के देहावसान के अनन्तर उसके पुत्र-पौत्र आदि गजनी की सत्ता हथियाने के प्रयास में परस्पर लड़-भिड़ कर निर्बल बन गये और वि० सं० १०३४ में सुबुक्तगीन गजनवी द्वारा स्थापित गजनी का राज्य विक्रम की १२वीं शताब्दी का अन्त होने से पूर्व ही समाप्त हो गया । महमूद की मृत्यु के पश्चात् गजनी की लड़खड़ाती सल्तनत की इस कमजोरी का लाभ उठा कर गजनी राज्य के अनेक सामन्त स्वतन्त्र हो गये और उत्तरी भारत के अनेक राजाओं ने सम्मिलित प्रयास के संकल्प के साथ मुसलमानों के शासन को सिन्ध और पंजाब से समाप्त कर देने का निश्चय किया। जैसा कि पहले बताया जा चुका है दिल्ली के तत्कालीन तोमरवंशी राजा ने भारत के पश्चिमी प्रदेश सिन्ध से कुछ समय के लिये इस्लामी हुकूमत को समाप्त भी कर दिया। उस अवधि में अजमेर बसाने वाले अजयदेव ने मुसलमानों को युद्ध में परास्त किया। तदनन्तर अजयदेव के पुत्र अर्णोराज के शासनकाल में मुसलमानों ने एक सशक्त एवं विशाल सेना ले अजमेर पर आक्रमण किया। पुष्कर को नष्ट करने के पश्चात् पुष्कर की घाटी को लांघ कर मुसलमानों की वह सेना अजमेर के एकदम समीप उस स्थान पर आ पहुंची, जहां इस समय आनासागर विद्यमान है। अर्णोराज ने मुसलमानों की सेना का भीषण रूप से संहार कर उसको बड़ी करारी हार दी। उस ऐतिहासिक युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात् अर्णोराज ने यह निश्चय किया कि जिस जिस स्थान पर मुसलमानों का रक्त गिरा है, वह सब भूमि अपवित्र हो गई है । अतः इस अपवित्र हुई भूमि को पवित्र करने के लिये इसकी जल से शुद्धि की जाय। इस प्रकार निश्चय कर अणोराज ने उस युद्ध-भूमि में एक विशाल एवं गहरा तालाब खुदवा कर उस पर चूने और पत्थर की सुदृढ़ पाज (पाल) बनवा कर उसे एक ऐसा चिरस्थायी बनवा दिया कि उस भूमि में सदा 2. Shortly after A. D. 1231 Lvavanprasad retired and Vir Dhavala became the De facto ruler of Gajarat. -Struggle for Empire, p. 80 By. R. C. Majumdar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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