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________________ ४४८ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-~-भाग ४ राजमाता की सहायता की। मूसलाधार वर्षा में युद्ध की अनभ्यस्त शत्रुसेना के रणांगण से पैर उखड़ गये । राजमाता नायकीदेवी ने अपने योद्धानों का उत्साह बढ़ाते हुए शत्रुसेना पर प्रलयंकर प्रहार किये । गौरी की सेना प्राण बचा उल्टे पांवों भाग खड़ी हुई । शहाबुद्दीन गौरी भी गुर्जर सेना के शस्त्राघातों से घायल हो अपनी बची सेना के साथ गौर की ओर लौट गया।' यहां यह इतिहासरुचि प्रत्येक विज्ञ के लिये विचारणीय है कि जैनधर्म के प्रति शताब्दियों से प्रगाढ़ निष्ठा रखने वाले कदम्ब राजवंश की राजकुमारी और "परमार्हत्" विरुद से विभूषित एवं अहिंसा के सक्रिय परमोपासक गुर्जरेश्वर कुमारपाल की पुत्रवधु नायकीदेवी ने मुहम्मद गौरी जैसे दुर्दान्त विदेशी आततायी को अपने साहस, शौर्य एवं रणकौशल से युद्ध में परास्त तथा घायल कर अहिंसा के गौरवशाली समुन्नत भाल पर कायरता की कलंक-कालिमा की छाया तक न पड़ने दी। युद्ध में गुर्जरराज्य की जय और मुहम्मद गौरी की पराजय के कुछ ही समय पश्चात् गुजरात के बालक महाराजा मूलराज की उसी वर्ष वि० सं० १२३५ में प्राकृतिक मृत्यु के अनन्तर उसके छोटे भाई भीम (द्वितीय) को गुर्जर राज्य के राजसिंहासन पर आसीन किया गया। राज्यारोहण के समय महाराजा भीम की शैशवावस्था थी। मालवराज सुभटवर्मन ने इसे गुजरात विजय का स्वर्णिम अवसर समझकर एक शक्तिशाली सेना ले गुजरात की ओर प्रयाण किया । चरों के माध्यम से सुभटवर्मन के गुजरात की ओर बढ़ने के समाचार सुनकर महाराज भीम का प्रधानामात्य उसके सम्मुख जा गुजरात की सीमा पर उससे मिला और मेरुतुगसूरि द्वारा अपनी ऐतिहासिक कृति प्रबन्धचिन्तामणि में किये गये उल्लेख के अनुसार उसने मालवपति सुभटवर्मन से कहा : १. (क) सं० १२३३ पूर्ववर्ष १ बालमूलराजेन राज्यं कृतमस्य मात्रा नाइकिदेव्या परम. दिभूपसुतयोत्संगे शिशु निधाय गाडरारघट्टनामनि घाटे संग्रामं कुर्वत्या म्लेच्छराजा तत्सत्त्वादकालागतजलदपटलसाहाय्येन विजिग्ये । . -प्रबन्धचिन्तामणि, पृष्ठ १५६,-(मेरुतंगसूरिरचित) (ख) राजपूताने का इतिहास, खण्ड १ (अोझा), पृष्ठ १७६ और २७१ (ग) इलियट, हिस्ट्री आफ इंडिया, वोल्यूम २, पृष्ठ २२६-३० (घ) In A.D. 1178 Mu'izzudin Muhammad Ghuri attacked the King dom of Gujarat. Naikidevi, "taking her son (Mularaja) in her lap" led the chalukya army against the muslims and defeated them at Gadaraghatta near the foot of Mt. Abu. -The History & Culture of the Indian People. The Struggle for Empire. (Vol. V.) By R.C. Majumdar, Page 78. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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