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________________ सामान्य श्रृंतधर काल खण्ड २ ] महाराजा कुमारपाल [ ४३७ महाराज कुमारपाल के जीवन की यह घटना साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका चारों ही वर्गो के लिये सदा सर्वदा प्रदीप स्तम्भ की तरह मार्ग प्रदर्शन करती हुई जन-जन के अन्र्तगत में अभिनव चेतना का संचार करती रहेगी। . दीर्घदर्शी कुमारपाल महाराजा कुमारपाल ने अपने एक निकट सम्बन्धी आनाक की सेवाओं से सन्तुष्ट हो उसे सामन्त पद प्रदान कर दिया। सामन्त होने के उपरान्त भी आनाक प्रायः कुमारपाल की सेवा में ही रहा करता था। एक दिन मध्याह्न वेला में कुमारपाल अपनी चन्द्रशाला में सुखासन पर विश्राम मुद्रा में बैठा सामन्त आनाक से बातचीत कर रहा था, उस समय सामन्त का सेवक चन्द्रशाला में प्रविष्ट हुआ। उसे देखते ही कुमारपाल ने सामन्त आनाक से प्रश्न किया :-"यह कौन है ?" __. “सम्भवतः किसी आवश्यक कार्यवशात् घर से परिचारक आया है," यह कहता हुआ सामन्त अपने सेवक को साथ ले कुमारपाल के विश्रान्तिकक्ष से बाहर गया और अपने सेवक से प्रश्न किया :-“घर पर सब कुशल-मंगल तो है ?" हर्षावरुद्ध कण्ठ स्वर में अपने स्वामी का अभिवादन करते हए सेवक ने कहा :-"बधाई है महाराज ! आपको पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है।" पुत्ररत्न के जन्म का सुखद सम्वाद सुनते ही सामन्त का अंग-प्रत्यंग पुलकित हो उठा, मुख पर हर्ष की लहर लालिमा बरसाने लगी और वह पुनः महाराजा के समक्ष अपने आसन पर बैठ गया। सामन्त आनाक की हर्षोत्फुल्ल मुखमुद्रा को देखकर महाराजा कुमारपाल ने प्रश्न किया :- "घर से क्या सुखद सन्देश प्राया है सामन्त ?" "घर पर पुत्र का जन्म हुआ है महाराज !” सामन्त के इस उत्तर को सुनकर कुमारपाल कुछ क्षण चिन्तन की मुद्रा में मन ही मन विचार कर बोला :-“सामन्त ! तुम्हारा यह पुत्र-रत्न महाप्रतापी होगा। इसके जन्म की सूचना देने वाला व्यक्ति इस नवजात शिशु के पुण्य के प्रताप से बिना किसी प्रकार की रोक-टोक एवं बाधा के राजप्रासाद में हमारे कक्ष में आ गया। किसी भी प्रहरी ने तुम्हारे सेवक को टोका तक नहीं। इस प्रकार प्रबल पुण्य को लेकर आया हुप्रा यह बालक आगे जाकर विशाल गुर्जर प्रदेश का अधिपति होगा। किन्तु इस शिशु के जन्म की शुभ सूचना देने वाले ने तुम्हें इस स्थान से उठाकर सूचना दी अतः वह अणहिल्लपुर पट्टण में और धवलगृह में अपनी राजधानी न रखकर किसी अन्य स्थान में ही रखेगा।" - इस प्रकार एक भविष्यद्रष्टा के रूप में कुमारपाल ने शकुन देखकर जो भविष्यवाणी की वह अक्षरश: चरितार्थ हुई । यही शिशु लवणप्रसाद कालान्तर में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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