SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३४ ] . [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ भगवान् सीमंधर स्वामी की सेवा में महाविदेह क्षेत्र में उपस्थित हो कुमारपाल और हेमचन्द्रसूरि के पूर्वभव और आगे के भवों का विवरण पूछा । सीमंधर प्रभु से अभीप्सित पूरा विवरण ज्ञात कर देवी प्रा० श्री हेमचन्द्रसूरि की सेवा में उपस्थित हुई और कहा-"विहरमान तीर्थंकर भगवान् सीमंधर स्वामी ने फरमाया है कि कुमारपाल अपनी आयु पूर्ण कर भुवनपति देव होगा और देवायु के पूर्ण होने पर जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की आगामी उत्सर्पिणी काल की चौवीसी के प्रथम तीर्थकर पद्मनाभ जिनेश्वर का गणधर बनेगा । गणधर-पद में केवल ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् कुमारपाल का जीव अपनी आयु पूर्ण होने पर सिद्ध बुद्ध मुक्त होगा। हेमचन्द्रसूरि संख्यात भव कर अन्त में निर्वाण को प्राप्त करेगा।" अपने गुरु आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि के प्रति कुमारपाल के मन में इतनी प्रगाढ़ आस्था थी कि पाटण से सैकड़ों कोस की दूरी पर रहने वाला कोई व्यक्ति आचार्यश्री की अकारण ही निन्दा करता और उसकी इस प्रकार की धृष्टता से कुमारपाल अवगत हो जाता तो वह उसे दण्ड दिये बिना शान्ति अनुभव नहीं करता था। इस प्रकार का एक उदाहरण सोहम कुलरत्नपट्टावली-रास में निम्नलिखित रूप में उपलब्ध होता है : गुर्जरपति कुमारपाल की बहिन बाघ नरेश्वर को व्याही गई थी। वह प्रतिदिन अपनी रानी के साथ चौपड़ खेलते समय जब भी रानी उसकी सारी को मारती तो यही कहता "हेम मोडे को मार' अर्थात् हेमचन्द्रसूरि को मार । रानी ने अपने पति को बहुत समझाया कि वह महापुरुष के लिये इस प्रकार के अपशब्दों का प्रयोग न करे । किन्तु उसका तो क्रम इसी प्रकार चलता रहा । दुःखी होकर रानी ने अपने भाई चालुक्यराज कुमारपाल को इस सम्बन्ध में लिखा। अपने गुरु के लिये इस प्रकार अपमानजनक भाषा के प्रयोग से कुमारपाल बड़ा क्रुद्ध हुना। उसने अपने बहनोई पर विशाल सेना लेकर आक्रमण किया और उसे पकड़कर अपने साथ ले आया। कुमारपाल ने बाघ नृपति को पर्याप्त समय तक अपने पास रखा और साम-दाम-दण्ड से उसे निष्ठावान् जैन धर्मावलम्बी बनाकर ससम्मान उसे उसके राज्य में पहुंचा दिया । भ्रष्ट मुनि को श्रमणश्रेष्ठ बनाने .. का प्रादर्श उदाहरण महाराजा कुमारपाल ने श्रावक के बारह व्रत अंगीकार कर लेने के पश्चात् एक प्रकार से यह पक्का नियम बना लिया था कि वह प्रत्येक साधु को, चाहे वह शिथिलाचारी हो अथवा उत्कृष्ट क्रियानिष्ठ, सबको समान रूप से वन्दन नमन करेगा । एक दिन वह अपनी चतुरंगिणी सेना के मध्य भाग में गजराज पर आरूढ़ हो राजमार्ग पर जा रहा था । मार्ग में उसने देखा कि एक मुडित श्वेत वस्त्रधारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy