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________________ सामान्य श्रुतघर काल खण्ड २ ] महाराजा कुमारपाल [ ४२६ विघटन न हो और वह एकता के सूत्र में आबद्ध सौहार्दपूर्ण वातावरण में उत्कर्ष की ओर अग्रसर होता रहे। इसी पवित्र उद्देश्य से मैंने इस प्रकार की प्राज्ञा प्रसारित की थी। मुझे यह ज्ञात नहीं था कि आपने महामन्त्र नमस्कार मन्त्र का अनुष्ठान एवं विवेचन प्रारम्भ कर दिया है। इससे आपको जो कष्ट हुआ है, उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं।" जयसिंहसूरि ने कहा-"राजन् ! श्रमण का सबसे बड़ा धन समभाव ही है । ऐसी दशा में आप पर क्रुद्ध होने का तो प्रश्न ही नहीं है। किन्तु एक बात मैं आपसे अवश्य कहूंगा कि धर्म की आगमिक मूल मान्यताओं के सम्बन्ध में आपके अन्तर्मन में जो विचार-विपर्यास का उद्भव हआ है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि अब सुनिश्चित रूपेण आपकी आयु स्वल्प ही अवशिष्ट रह गई है। इस प्रकार की स्थिति में अब धर्म कार्यों के निष्पादन में अहर्निश संलग्न हो जाना ही आपके लिए श्रेयस्कर सिद्ध होगा।" जयसिंहसूरि के इस प्रकार के उत्तर को सुनकर विचारद्वन्द उत्पन्न हा कि राजाज्ञा के प्रति आक्रोश प्रकट करने मात्र के लिए ही सूरिवर ऐसा कह रहे हैं अथवा ज्योतिष शास्त्र के बल से ज्ञात हुई वास्तविकता को ही प्रकट कर रहे हैं। इस प्रकार के विचार द्वन्द्व द्वारा आन्दोलितमना कुमारपाल जयसिंहसूरि को वन्दन कर हेमचन्द्रसूरि के पास लौटा और जयसिंहसूरि के साथ हुई बातचीत का निष्कर्ष अपने गुरु को सुनाया। प्राचार्य हेमचन्द्रसूरि ने जयसिंहसूरि के भविष्य कथन पर अपने निमित्त ज्ञान के बल पर विचार किया और उसे अक्षरश: सत्य पाकर कुमारपाल से कहा-“राजन् ! अंचलगच्छीय प्राचार्यश्री जयसिंहसूरि वस्तुतः निमित्तशास्त्र के पारगामी निष्णात विद्वान् हैं । उन्होंने तुम्हारी आयु के अवसान काल के सम्बन्ध में जो तुम्हें सावधान किया है, उनकी वह भविष्यवाणी तुम्हारे ग्रह गोचरों के ध्यानपूर्वक पर्यवेक्षण से सत्य होती प्रतीत हो रही है। इस प्रकार की स्थिति को देखते हुए आपको यथाशक्य अपना अधिकाधिक समय प्रात्मकल्यारण की साधना . में ही लगाना चाहिये ।" पट्टावलीकार ने आगे लिखा है-'जयसिंहसूरि द्वारा अपनी आयु के सम्बन्ध में की गई भविष्यवाणी की आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि द्वारा भी पुष्टि हो जाने के अनन्तर अपने आराध्य गुरुदेव में अटूट-अटल आस्था रखने वाले महाराज कुमारपाल को अपनी आयु के आसन्न अवसानकाल के सम्बन्ध में पूरा विश्वास हो गया और उसने अपना पूरा का पूरा समय आत्मसाधना में लगा दिया। इस प्रकार अहर्निश धर्माराधन में संलग्न परमार्हत् महाराज कुमारपाल ने सातवें दिन समाधिपूर्वक इहलीला समाप्त कर परलोक के लिये प्रयाण कर दिया ।" ___"उपरि लिखित राज्यादेश के परिणामस्वरूप पंचमी के दिन सांवत्सरिक पर्वाराधन करने वाले सभी गच्छों के प्राचार्य एवं साधु साध्वी समूह पाटन से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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