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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] महाराजा कुमारपाल
[ ४२७ महाराजा कुमारपाल ने और कोई कठोर दण्ड न देकर पौर्णमीयक गच्छ के प्राचार्य एवं उनके श्रमण श्रमणी समूह को अपने १८ देशों में विस्तृत राज्य की सीमा से बाहर निष्कासित कर दिया।
कतिपय गच्छों के प्राचार्य एवं साधु, जो पूर्णिमा के दिन प्रतिक्रमण करने के अपने निश्चय पर अटल रहे, वे सब बिना किसी को कुछ कहे सुने स्वतः ही पाटन से बाहर चले गये।
आगमिक मान्यता के स्थान पर परम्परा को ही कुमारपाल द्वारा प्रश्रय दिये जाने का एक और उदाहरण आचार्यश्री मेरुतुगसूरि द्वारा रचित 'मेरुतुगीया अंचलगच्छ पट्टावली' (संस्कृत) में भी उपलब्ध होता है, जिसका सारांश निम्न प्रकार है :
"एक बार अणहिल्लपुर पट्टण में विभिन्न गच्छों में इस प्रकार का विवाद उत्पन्न हुआ कि संवत्सरी पर्व चौथ को मनाया जाय या पंचमी को । यह विवाद पारस्परिक विद्वेष के कारण उग्र रूप धारण कर गया। यह पर्व चौथ के दिन ही मनाया जाय, न कि पंचमी को । इस पक्ष के समर्थक कतिपय गच्छों के श्रावकों ने राजा कुमारपाल के समक्ष उपस्थित होकर अपने प्रतिपक्षी गच्छों के प्रति ईर्ष्यावशात् इस प्रकार का अभियोग प्रस्तुत किया :-"राजन् आप स्वयं और हम सब सदा से ही चौथ के दिन ही सांवत्सरिक महापर्व मनाते आये हैं। इसके विपरीत कतिपय गच्छों के हठाग्रही ऐसे श्रमण और साधु भी पत्तन में विद्यमान हैं, जो पंचमी के दिन सांवत्सरिक पर्व मनाने पर तुले हुए हैं। पर्वाधिराज संवत्सरी पर्व आने ही वाला है। आप जैसे धर्मनिष्ठ परमाहत राजाधिराज के राज्य में सांवत्सरिक पर्व के सम्बन्ध में इस प्रकार का धार्मिक मान्यता भेद वस्तुतः महान् जैनधर्म संघ के लिये विघटनकारी सिद्ध होगा। इस प्रकार की स्थिति को देखते हुए इस प्रकार की विघटनकारी प्रवृत्ति को रोकना संघहित में परमावश्यक है । अतः आप जैसा उचित समझे आदेश फरमावें।"
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कुमारपाल अटूट आस्थावान् जैन धर्मावलम्बी राजाधिराज था । वह जैनधर्म के चरमोत्कर्ष के लिये अहर्निश चिन्तनशील रहता था। उसे पर्वाधिराज के सम्बन्ध में इस प्रकार का उग्र विवाद एवं मतभेद बड़ा ही अप्रीतिकर और अनुचित प्रतीत हुआ। दोनों पक्षों की युक्ति-प्रयुक्तियों पर भली-भांति सोच-विचार कर लेने के पश्चात् उसने तत्काल इस प्रकार की राजाज्ञा प्रसारित की :-पंचमी के दिन सांवत्सरिक पर्व का आराधन करने के लिये कृतसंकल्प श्रमण उसके राज्य के पट्टनगर पाटन में किसी भी दशा में पंचमी के दिन पर्वाराधन नहीं कर सकेंगे अतः उन्हें पर्वाराधन से पूर्व ही अन्यत्र चले जाना
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