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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] महाराजा कुमारपाल [ ४२१ विशाल गुर्जरराज्य के राजसिंहासन पर आसीन होने के उपरान्त भी कुमारपाल उस महिला द्वारा खिलाये गये करम्ब को नहीं भूला और उस घटना की स्मृति में उसने अनहिलपुर पत्तन में करम्ब विहार का निर्माण करवाया। एक समय चरों ने कुमारपाल के समक्ष उपस्थित होकर निवेदन किया कि सौराष्ट्र के 'सूवर' नामक सामन्तराज ने विद्रोह प्रारम्भ कर दिया है। महाराज कुमारपाल ने अपने मन्त्रीश्वर उदयन को एक सेना देकर 'संवर' को दण्ड देने के लिये भेजा । उदयन अपनी सेना के साथ सौराष्ट्र की ओर त्वरित वेग से बढ़ा । वर्द्धमानपुर में आकर उसने भगवान् ऋषभदेव को वन्दन करने की इच्छा से विमलगिरि की ओर प्रयाण किया। वहां जिन मन्दिर में वन्दन करते समय उसने देखा कि एक चूहा दीपक की जलती हुई बाती को मुख में लिये उस काष्ठ निर्मित जिनालय के एक बिल में प्रवेश करने जा रहा है और एक पुजारी ने दौड़कर चूहे के मुख से जलती हुई उस बत्ती को बाहर गिरा दिया है। यह देखकर मन्त्रिवर उदयन के मन में बड़ी चिन्ता उत्पन्न हुई कि यह काष्ठ निर्मित जिनालय इस प्रकार के अग्नि प्रकोप से किसी भी समय भस्मीभूत हो सकता है। उसने उसी क्षण निश्चय किया कि वह शत्रुजय के उस देव मन्दिर का और शकुनिका विहार का पुनरुद्धार करवाएगा। इस प्रकार के संकल्प के साथ अपने सैनिक शिविर में लौटकर अपने शत्र से संग्राम करने हेतु आगे की ओर प्रयाण किया। संवर ने अपनी शक्तिशाली सेना के साथ अकस्मात् ही आक्रमण कर पाटन की सेना को परास्त कर दिया। अपनी सेना की दुर्दशा देख उदयन सूंवर की ओर बढ़ा और वहां उन दोनों के बीच जमकर युद्ध हुआ। अपने सेनापति को शत्रु से जूझते हुए देखकर पत्तन की सेना में नवीन उत्साह की लहर जागृत हो उठी और उसने शत्रु सेना पर अति भीषण वेग से प्रत्याक्रमण किया। सूंवर की सेना नष्ट-भ्रष्ट एवं छिन्न-भिन्न हो गई और सूवर रणांगरण से भाग खड़ा हुआ। उदयन को विजयश्री तो प्राप्त हुई किन्तु शस्त्रों के प्रहारों से उसका सम्पूर्ण शरीर गम्भीर रूप से आहत हो गया था। प्राथमिक चिकित्सा के पश्चात् गम्भीर रूपेण आहत मन्त्रीश्वर उदयन को उसके घर पहुंचाया गया । उदयन ने अपने प्रात्मीयजनों के समक्ष करुण क्रन्दन करते हुए विलाप करना प्रारम्भ किया। इससे सबको बड़ा आश्चर्य हुआ कि अनेक युद्धों में विजय प्राप्त करने वाला शूर शिरोमणि मन्त्रिराज आज विलाप किस कारण से कर रहा है। स्वजनों द्वारा पूछे जाने पर उदयन ने कहा :-"रणांगण में जूझने से पहले आदिदेव के दर्शन करते समय मैंने यह दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली थी कि मैं शत्रुञ्जय के काष्ठ निर्मित जिनालय और शकुनिका विहार का जीर्णोद्धार करूगा। किन्तु अब मुझे स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि मेरी ये अन्तिम अभिलाषाएं अपूर्ण अवस्था में मेरे साथ ही परलोक की ओर प्रयाण करने वाली हैं। इसी कारण मैं विलाप कर रहा हूं। उदयन के आत्मीयजनों ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा :-"हम आपके इस कार्यभार को अपने कन्धों पर लेते हैं । वाग्भट्ट और पाम्रभट्ट-आपके ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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