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________________ ४१८ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ देखकर उस विधवा अबला के आश्चर्य का पारावार नहीं रहा। उसने पृथ्वी पर अपना मस्तक रखते हुए कुमारपाल को प्रणाम किया। अर्द्ध-रात्रि के अन्धकार में एक अबला के समक्ष प्रकट किये गये कुमारपाल के ये उद्गार सूर्योदय होते-होते उस अबला के माध्यम से अरणहिल्लपुर पट्टण के आबाल वृद्ध प्रजाजनों के कण्ठहार बन गये । गुजरात उन दिनों देश-विदेश से व्यापार का केन्द्र होने के कारण अतीव समृद्धिशाली प्रदेश था। इसमें कुबेरोपम अपार सम्पत्ति के स्वामी समृद्धिशाली श्रेष्ठियों की संख्या गणनातीत थी । इस प्रकार के समृद्धिशाली राज्य में मृतिकर से राज्य को विपुल धनराशि का लाभ होता था। किन्तु इस घटना ने कुमारपाल के अन्तर्मन को आन्दोलित कर दिया । सम्भव है उसके सम्बन्धित मन्त्रियों ने राज्य को इस स्रोत से होने वाली आय का स्मरण भी दिलाया होगा किन्तु कुमारपाल ने यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि चाहे लाखों ही नहीं करोड़ों की हानि भी राज्य को क्यों न हो जाय, वह इस प्रकार के प्रजापीडक कर को निरस्त करके ही रहेगा। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कुमारपाल ने अदत्तादान विरमण व्रत को अपने गुरु प्राचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि से ग्रहण करते समय इस कर को पूर्ण रूप से सदा के लिये निरस्त कर दिया। जिनशासन के अभ्युत्थान, उत्कर्ष, प्रचार और प्रसार की तीव्र अभिलाषा लिये कुमारपाल ने हेमचन्द्रसूरि से प्रार्थना की कि वे उत्कृष्ट कोटि के साहित्य का निर्माण कर जिनशासन के साहित्य भण्डार की शोभा बढ़ावें। कुमारपाल की प्रार्थना को स्वीकार कर हेमचन्द्रसूरि ने उत्कृष्ट कोटि के जैन साहित्य का निर्माण करना प्रारम्भ किया। राजा ने विशाल भारत के विभिन्न राज्यों से प्राचीन ग्रन्थों को मंगवा कर उन्हें प्राचार्यश्री को समर्पित किया ताकि उनको साहित्य के निर्माण में सहायता मिले। प्राचीन साहित्य के संकलन हेतु कुमारपाल ने काश्मीर राज्य तक से प्राचीन ग्रन्थों का विशाल साहित्य भण्डार अपने हाथियों पर लदवा कर मंगवाया। साहित्य निर्माण के लिये परमावश्यक प्रामाणिक एवं प्राचीन सामग्री के उपलब्ध हो जाने पर हेमचन्द्रसूरि ने 'त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र' नामक अति विशाल महाकाव्य की रचना की जिसमें ऋषभादि महावीरान्त चौबीसों तीर्थंकरों, उनके गणधरों, बारह चक्रवत्तियों, नौ वासुदेवों, नौ बलदेवों और नौ प्रतिवासुदेवों के जीवन चरित्र विस्तारपूर्वक अति सुगम एवं रोचक शैली में दिये गये है । आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने मानव मात्र के लिये परमोपयोगी लोक शास्त्र की रचना की। हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित साहित्य अतिविशाल था। उनके द्वारा रचित जो ग्रन्थ वर्तमान में उपलब्ध हैं, उनके नाम आचार्यश्री के जीवन वृत्त में उल्लिखित किये जा चुके हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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