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________________ ३८० } { जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४ कर्णाटक के महाराजा जयकेशी की राजरानी ने एक कन्या को जन्म दिया । उस कन्या का नाम मयणल्ल देवी रखा गया। एक बार राजकुमारी मयरगल्ल देवी ने शिवभक्तों के मुख से सोमेश्वर का स्तुति पाठ सुना । सोमेश्वर का नाम सुनते ही राजकुमारी को जाति-स्मरण ज्ञान हो गया कि वह पूर्व जन्म में ब्राह्मणी श्री । एक-एक मास के बारह मासोपवास करने के पश्चात् उस ब्राह्मणी ने बारह प्रकार की वस्तुएं उस तप के 'उद्यापन में दान कर सोमेश्वर देव के दर्शन करने के लिये सोमेश्वर तीर्थ की ओर प्रयाण किया । अपनी यात्रा के अन्तिम चरण में जब वह बाहुलोड नगर में प्राई तो उससे राज्याधिकारियों ने सोमेश्वर तीर्थ के यात्रियों से वसूल किये जाने वाले बाहुलोडकर देने की बात कही। उस ब्राह्मणी के पास उस कर को चुकाने के लिये कुछ भी नहीं था । इस कारण राज्य द्वारा नियुक्त कराधिकारियों ने उसे सोमेश्वर देव के दर्शन करने की अनुमति प्रदान नहीं की । सोमेश्वर देव के दर्शन न कर पाने के कारण वह ब्राह्मणी अत्यन्त दुखित हुई और मृत्यु से पूर्व उसने यह निदान किया कि वह सोमेश्वर के यात्रियों पर लगाये जाने वाले उस बाहुलोड कर को आगामी जन्म में बन्द करवाने वाली हो । इस प्रकार का निदान कर उसने ग्रामरण अनशन किया और वह सोमेश्वर तीर्थ के नगर में निधन को प्राप्त हो महाराजा जयकेशी की राजपुत्री के रूप में उत्पन्न हुई । इस प्रकार का जाति स्मररंग ज्ञान हो जाने के अनन्तर राजकुमारी मयणल्ल देवी ने प्ररण किया कि सोमेश्वर के यात्रियों को बाहुलोड कर से मुक्ति दिलाने के लिये वह गुजरात के महाराजा के साथ ही विवाह करेगी । अन्य किसी के साथ नहीं । कर्णाट राज जयकेशी को जब अपनी पुत्री के प्ररण की बात ज्ञात हुई तो उन्होंने अपने मन्त्रियों को भेजकर कर्ण से प्रार्थना की कि वे उसकी पुत्री का पाणिग्रहण कर उसे अपनी रानी के रूप में स्वीकार करें । कर्ण ने पहले से ही मयणल्लदेवी के कुरूपा होने की बात सुन रखी थी । श्रतः उसने जयकेशी की प्रार्थना पर कोई ध्यान नहीं दिया । अपने मन्त्रियों से गुर्जरेश कर्ण की इस प्रकार की उदासीनता के समाचार सुनकर जयकेशी ने और कोई उपाय न देख कर्ण को ही अपना पति बनाने के लिये कृतसंकल्पा राजकुमारी मयणल्लदेवी को अपने विश्वस्त राज्याधिकारियों एवं दास दासियों के साथ स्वयम्वरा के रूप में हिलपुर पट्टण भेज दिया । स्वयम्वरा राजकुमारी मयरगल्लदेवी के अरगहिल्लपुर पट्टण पहुंचने की बात सुनकर महाराजा कर्ण ने प्रच्छन्न वेष में, गुप्त रीति से उस राजकुमारी को देखा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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