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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ 1
सिद्धराज जयसिंह
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कर लिया गया और इस प्रकार एक विशाल गुर्जर राज्य के शासन की बागडोर महाराजा जयसिंह के हाथ में उसके बाल्यकाल में ही आ गई और महाराजा कर्ण की उदयमती नाम की राणी के सहोदर मदनपाल को जयसिंह का संरक्षक नियुक्त किया गया । मदनपाल बड़ा ही विचित्र प्रकृति का व्यक्ति था । एक विशाल राज्य के संरक्षक और विशाल गुर्जर राज्य के महाराजा जयसिंह के अभिभावक का पद प्राप्त कर लेने के अनन्तर उसकी स्वेच्छाचारिता बढ़ गई । उन दिनों लीला नामक राज्यवैद्य हिलपुर पट्टण में रहता था । वह अपने समय का एक सर्वोत्कृष्ट नाड़ी वैद्य और आयुर्वेद का पारंगत विद्वान् था । जो कोई भी रोगी उसके पास ग्राता वह इस निष्णात वैद्य की चिकित्सा से पूर्ण रूपेण रोग मुक्त हो जाता । उसकी कीर्ति दिग्दिगन्त में व्याप्त हो गई और न केवल गुर्जर राज्य के ही अपितु सुदूरस्थ देशों के लोग भी उसके पास चिकित्सा करवाने के लिये आने लगे । उस राजवैद्य की चमत्कारपूर्ण चिकित्सा पद्धति के प्रभाव से हजारों लोग उसे प्रसन्न हो सम्मानपूर्वक स्वर्ण मुद्राएं प्रदान करने लगे । राजवैद्य के घर में लोगों द्वारा की गई इस प्रकार की स्वर्ण वृष्टि को देखकर मदनपाल ने बिना किसी रोग के ही रुग्ण जैसा ब्याज अथवा छल करते हुए उस राजवैद्य को अपने यहां बुलवाया । नाड़ी देखने पर उस राजवैद्य ने मदनपाल से कहा :- " आपका स्वास्थ्य पूर्णतः उत्तम है, पको किसी प्रकार की व्याधि नहीं है ।" राजवैद्य की बात सुनते ही आक्रोशभरे स्वर में मदनपाल ने कहा :- " मैंने तुम्हें किसी रोग को दूर करने के लिए नहीं अपितु अपनी स्वर्ण की भूख को मिटाने के लिये कांचन मुद्रानों का पथ्य मुझे प्रदान करने के लिये बुलाया है । अतः तत्काल बत्तीस हजार स्वर्ण मुद्राएं मुझे प्रदान करो अन्यथा तुम्हें बन्दी कर लिया जायगा ।" राजवैद्य से किसी उत्तर की बिना अपेक्षा किये ही मदनपाल ने तत्काल उस राजवैद्य को बन्दी बना लिया । राजवैद्य ने साश्चर्य शोकाभिभूत हो अपनी मुक्ति के लिए तत्काल ३२ हजार स्वर्ण मुद्राएं लाकर मदनपाल को समर्पित की और उससे अपना पीछा छुड़ाया ।
मदनपाल के इसी प्रकार के अत्याचारों से अणहिल्लपुर पट्टण की प्रजा संत्रस्त हो उठी । महाराजा जयसिंह उस समय अपनी किशोर वय को पाकर यौवन के द्वार पर पदनिक्षेप करने ही वाले थे । जब जयसिंह ने मदनपाल के अत्याचारों की बात सुनी तो उन्होंने अपने मन्त्री सान्तू से एकान्त में मन्त्ररणा कर उसे आदेश दिया कि समस्त गुर्जर राज्य पर छाये हुए मदनपाल से येन-केन प्रकारेण राज्य की प्रजा को शान्ति दिलवाएं। इस प्रकार की मन्त्ररणा के पश्चात् सान्तु मन्त्री द्वारा बताये गये उपाय से जयसिंह ने गुप्त रूप से अपने अंगरक्षकों द्वारा मदनपाल को मरवा डाला । और मन्त्री सान्तु को अपने प्रधानमन्त्री पद पर नियुक्त किया ।
महाराजा जयसिंह के जन्म के सम्बन्ध में प्रबन्ध चिन्तामरिणकार मेरुतु गाचार्य ने एक बड़ी रहस्यपूर्ण एवं प्राश्चर्यजनक घटना का उल्लेख करते हुए प्रबन्ध चिन्तामणि में लिखा है ।
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