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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] हेमचन्द्रसूरि [ ३७३ ५,६०० १०,००० २०४ १,८२८ ३६६ ३,५०० -६,८०० ७. धातु पारायण विवरण ८. अभिधान चिन्तामरिण ६. अभिधान चिन्तामरिण परिशिष्ट १०. अनेकार्थ कोष ११. निघंटु कोष १२. देशी नाम माला १३. काव्यानुशासन १४. छन्दोनुशासन १५. संस्कृत व्याश्रय १६. प्राकृत व्याश्रय १७. प्रमाण मीमांसा (अपूर्ण) १८. वेदांकुश १६. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र महाकाव्य, १० पर्व २०. परिशिष्ट पर्व २१. योगशास्त्र २२. वीतराग स्तोत्र २३. अन्य योग व्यवच्छेद द्वात्रिशिका (काव्य) २४. अयोग व्यवच्छेद द्वात्रिशिका काव्य २५. महादेव स्तोत्र ३,००० २,८२८ १,५०० २,५०० १,००० ३२,००० ३,५०० १२,७५० x mm 0 WW. ४४. आचार्यश्री हेमचन्द्र की इन कृतियों से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वे कितने महान् ग्रन्थकार थे। इस प्रकार लगभग ६३ वर्ष जैसे सुदीर्घ कालावधि के अपने आचार्य काल में हेमचन्द्रसूरि ने निरन्तर सरस्वती की उपासना करते हुए जन-जन के अन्तर्मन पर जैन धर्म के सिद्धान्तों की अमिट छाप अंकित कर जिनशासन की प्रतिष्ठा को बढ़ाया । गुर्जर प्रदेश के अपने समय के दो महा प्रतापी राजाओं को प्रेरणा देकर जन कल्याण के अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित करवा जन-जन के नैतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक धरातल को समुन्नत कर जनशक्ति को सुसंस्कृत किया। अन्त में अपना अन्तिम समय सन्निकट देख अपने युग के महान् योगी हेमचन्द्रसूरि ने परमाईत महाराज कुमारपाल, अपने शिष्यों एवं संघ-प्रमुखों को आमन्त्रित कर उन्हें जिनशासन की सेवा में उत्तरोत्तर अधिकाधिक निरत रहने Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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