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________________ सामान्य श्रुतघर काल खण्ड २ } हेमचन्द्रसूरि [ ३७१ सम्प्रति महाराज को बोध देकर जैनधर्म का सुदूरस्थ प्रदेशों में प्रचार करवाने वाले प्राचार्य सुहस्ति एवं वीर विक्रमादित्य को प्रतिबोध देकर जिनशासन की प्रभावना करने वाले प्राचार्य सिद्धसेन के पश्चात् आचार्यश्री हेमचन्द्र ही विगत ढाई हजार वर्षों में ऐसे महान् जिनशासन प्रभावक प्राचार्य हुए हैं, जिन्होंने सिद्धराज जयसिंह को जिनशासन का हितैषी और कुमारपाल चालुक्यराज को (वि० सं० १२१६) सच्चा जैन धर्मानुयायी, धर्मनिष्ठ, बारह व्रतधारी श्रावक बनाकर जिनशासन की महती प्रभावना की । यह हेमचन्द्रसूरि के उपदेशों का ही प्रभाव था कि कुमारपाल ने अपने विशाल राज्य के विस्तृत भू-भाग में चौदह वर्ष तक निरन्तर मारि की घोषणा करवाकर कोटि-कोटि मूक पशुओं को अभयदान प्रदान कर जैन धर्म की प्रतिष्ठा को बढ़ाया । 9 आचार्य श्री हेमचन्द्र के प्रभावशाली उपदेशों, प्रकाण्ड पांडित्य और समष्टि के कल्याण के लिये दी गई प्रेरणाओं का ही फल था कि विशाल गुर्जर राज्य के दो महाराजाओं – सिद्धराज जयसिंह और परमार्हत कुमारपाल - के राज्यकाल में गुर्जर प्रदेश को एक सुगठित, मानवीय आदर्शों से प्रेरित सुसंस्कृत, समृद्ध और समुन्नत राज्य के रूप में उभरने का अवसर मिला । प्राचार्य श्री हेमचन्द्र ने साहित्य सृजन के क्षेत्र में तो क्रान्ति लाकर एक प्रकार से नया कीर्तिमान स्थापित किया। आपकी प्रेरणा से सिद्धराज जयसिंह और परमार्हत कुमारपाल ने सुदूरस्थ प्रान्तों से प्रचुर मात्रा में प्राचीन ग्रन्थरत्नों को, उपयोगी अभिलेखों को एवं दुर्लभ साहित्य को पाटन में मंगवाकर न केवल गुजरात के ज्ञान भण्डारों को ही समृद्ध किया अपितु व्याकररण, न्याय, साहित्य, योग आदि अनेक विषयों के अभिनव ग्रन्थरत्नों के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया । गुर्जर राज्य के निवासियों में राष्ट्र साहित्य, सदाचार, नैतिकता, पुरातन भारतीय संस्कृति, साहसिकता, कर्त्तव्य - निष्ठा, कला आदि के प्रति जो विशिष्ट प्रेम आज भी दृष्टिगोचर होता है, उसके पीछे वस्तुतः निर्विवाद रूप से प्राचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि की प्रेरणाश्रों, अमोघ उपदेशों और उनके द्वारा सिद्धराज जयसिंह एवं महाराज कुमारपाल को समय-समय पर दी गई सत्प्रेरणाओं और सत्परामर्शो का बहुत बड़ा योगदान रहा है । इस तथ्य को स्वीकार करने में सम्भवत: किसी भी विज्ञ को किंचिन्मात्र भी आपत्ति नहीं होगी । उपरिवरिणत तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर भली-भांति यह सिद्ध हो जाता है कि प्राचार्य हेमचन्द्रसूरि विक्रम की बारहवीं तेरहवीं शताब्दी के जिनशासन के महान् प्रभावक प्राचार्य थे । उन्होंने न केवल जिनशासन के उत्कर्ष एवं प्रचार-प्रसार के लिये ही कार्य किया अपितु समष्टि के कल्याण के लिये भी उन्होंने १. "नेमिनाह चरिउ " - ( श्री नन्द्र के शिष्य श्री हरिभद्र द्वारा रचित ) की प्रशस्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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