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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] हेमचन्द्ररि [ ३६६ कुमारपाल ने "यदि ऐसा हुआ, तो उस राज्य के स्वामी वस्तुतः आप ही होंगे किन्तु मेरा निवेदन है कि सात वर्ष जैसी लम्वी अवधि मैं कैसे पार कर सकूँगा क्योंकि आज ही मेरे पास निर्वाह के लिए कुछ भी नहीं है।" __आचार्यश्री ने तत्काल अपने एक श्रावक को कहकर कुमारपाल को ३२ . द्रम्म (एक प्रकार की मुद्रा) दिलवाये और कहा-“मेरी एक बात सावधानीपूर्वक सुनो । आज से तुम्हें दरिद्रता का दुःख कभी नहीं देखना पड़ेगा । तुम्हें मेरे इन व्यवसायी श्रावकों से भोजन, वस्त्र आदि की यथासमय प्राप्ति होती रहेगी।" तदनन्तर कुमारपाल आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर उन्हें वन्दन करता हुआ अज्ञात लक्ष्य की ओर प्रस्थित हुआ। कभी उसने कापालिक का भेष धारण किया तो कभी कौल का तो कभी शैव का। इस प्रकार अनेक वेष बदलता हुआ कुमारपाल विभिन्न प्रदेशों के भिन्न-भिन्न ग्रामों एवं नगरों में भ्रमण करता रहा और उसने बिना किसी कठिनाई के सात वर्ष की अवधि व्यतीत कर दी। भविष्यवाणी के अनुसार राजसिंहासन पर आरूढ़ होने का समय सन्निकट आने पर कुमारपाल अणहिल्लपुर पट्टन पहुँचा। प्राचार्यश्री हेमचन्द्र के उपाश्रय में प्रविष्ट हो वह प्राचार्यश्री के रिक्त पट्ट पर उनके दर्शनों की प्रतीक्षा में बैठ गया। उसी समय आचार्यश्री हेमचन्द्र उपाश्रय में प्रविष्ट हुए और कुमारपाल को अपने पट्ट पर बैठा देखकर निश्चयात्मक स्वर में बोले-"कुमार ! अब तो निश्चित रूप से आप राजसिंहासन पर बैठोगे । मेरे पट्ट पर तुम्हारा इस प्रकार बैठना इसी भावी की सूचना देता है ।" ___ तदनन्तर कुमारपाल राजप्रासाद की ओर बढ़ा। राजप्रासाद के बाहर उसे गुर्जर राज्य के मन्त्रियों ने देखा और वे उसे आदरपूर्वक राजप्रासाद में ले गये। वे सभी मन्त्रिगण आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि द्वारा पूर्व में की गई भविष्यवाणी से अवगत थे । मन्त्री कृष्णदेव ने कुमारपाल से कहा-"महाराज ! सिद्धराज जयसिंह का देहावसान हो गया है। दो राजकुमार राजसिंहासन के प्रत्याशी के रूप में अन्दर बैठे हुए हैं । आप भी पाइये। मन्त्रिवर कृष्णदेव ने एक प्रत्याशी राजकुमार को उसकी योग्यता की परीक्षा हेतु पट्ट पर बिठाया । पर वह पट्ट पर बैठते समय अपने वस्त्रों को भी समेट नहीं सका । उसका उत्तरीय नीचे गिर पड़ा । सभी मन्त्रियों ने उसे अयोग्य घोषित करते हुए दूसरे प्रत्याशी को पट्ट पर बिठाया। उसने भी पट्ट पर बैठते ही उपस्थित मन्त्री समूह को हाथ जोड़ कर अपना मस्तक झुकाया । एक वयोवृद्ध मन्त्री ने कहा-“यह तो इस विशाल गुर्जर राज्य की चप्पा-चप्पा भूमि शत्रुराजाओं को समर्पित कर देगा।" उसे भी एक स्वर से सभी ने अयोग्य घोषित कर कुमारपाल को इस कारण सिहासन पर बैठने का निवेदन किया कि आचार्यश्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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