SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६६ ] | जैन धर्म का मौलिक इतिहास----भाग ४ प्रभावक चरित्र के इस उल्लेख से स्पष्टतः यही सिद्ध होता है कि प्राचार्यश्री हेमचन्द्र सब धर्मों के प्रति, सब धर्मों के प्राराध्य देवों के प्रति सम्मान प्रकट करने वाले और समन्वयवाद के प्रबल पक्षधर थे। सोमेश्वर तीर्थ में भगवान् सोमेश्वर की पूजा अर्चा एवं वहां अनेक प्रकार के महादान प्रदान करने के अनन्तर महाराज सिद्धराज जयसिंह प्राचार्य श्री हेमचन्द्र के साथ कोटिनगर में अवस्थित अम्बिका के मंदिर में पहुंचे। अम्बिका के मंदिर में गुर्जराधिप जयसिंह ने अपनी सन्ततिविहीनावस्था से प्रपीड़ित हो अम्बिका की अनेक दिनों तक विधिवत् उपासना की । आचार्यश्री हेमचन्द्र ने भी तीन दिन तक उपोसित रहते हुए ध्यानमग्न हो शासनाधिष्ठात्री अम्बिकादेवी का आह्वान करते हुए अाराधन किया। तीसरे दिन के उपवास की रात्रि के अवसानकाल में अम्बिकादेवी हेमचन्द्रसूरि के समक्ष प्रकट हुई और उसने हेमचन्द्राचार्य को सम्बोधित करते हुए कहा- "सुनो मुने ! नराधिप जयसिंह के और इसके चचेरे भाई कुमारपाल के संतान का योग नहीं है। इस समय ऐसा कोई पुण्यशाली प्राणी भी नहीं है जो इनमें से किसी के पुत्र के रूप में उत्पन्न हो । राजा जयसिंह के पश्चात् इसका भ्रातृज कुमारपाल गुर्जर राज्य का राजा होगा। वह विपुल पुण्य और यशोकीति अजित करने वाला प्रतापी राजा होगा। वह राजा कुमारपाल विजयाभियानों में अन्य कतिपय राज्यों को प्राप्त कर उनका उपभोग करेगा।" यह कर अम्बिकादेवी अदृश्य हो गई। जब सिद्धराज जयसिंह को हेमचन्द्रसूरि के मुख से अम्बिका द्वारा कही हुई यह बात विदित हुई कि उसके संतान का कोई योग नहीं है तो वह बड़ा दुःखी हुया और भारी मन लिये वह प्राचार्यश्री के साथ अपहिल्लपुर पट्टण लौट आया । अपनी राजधानी में पहुंचने के पश्चात् पुत्र की प्राशा के भंग हो जाने के कारण उद्विग्नमना सिद्धराज ने ज्योतिष शास्त्र में निष्णात अनेक ज्योतिषियों को अपने प्रासाद में बुलाया और उनसे भी पूछा कि उसके संतान होने का योग है अथवा नहीं। उन ज्योतिर्विदों ने सभा प्रकार के ज्योतिष शास्त्रों, प्रश्न चूड़ामणि, सामुद्रिक शास्त्र, पासा केवलि आदि अनेक विधियों से चिन्तन मनन के अनन्तर सर्व सम्मत निर्णय पर पहुँच कर महाराज जयसिंह से यही कहा कि आपके संतान का योग नहीं है । स्वर्गीय चालुक्य नरेश्वर कर्ण महाराज के पुत्र देवप्रसाद तथा देवप्रसाद के पुत्र त्रिभुवनपाल का पुत्र कुमारपाल, जो कि आपके चचेरे भाई का पुत्र है वही आपके पश्चात् विशाल गुर्जर राज्य के राज सिंहासन पर आसीन होगा । समस्त नैमित्तिक शास्त्रों से यही तथ्य प्रकाश में आता है जो अचल, अटल और अवश्यम्भावी है । भावी राजा कुमारपाल अनेक राजाओं को युद्ध में पराजित कर उनके राज्यों को गुर्जर राज्य में सम्मिलित करेगा। निमित्तशास्त्रों के परिज्ञान से यही प्रतिफलित होता है कि कुमारपाल एक महाप्रतापी राजा होगा और उसकी मृत्यु के पश्चात् प्रतापी चालुक्यवंश का राज्य नष्टप्रायः हो जायगा । सभी प्रमुख निमित्तज्ञों के इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy