________________
३१४
]
[
जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
देव के वरदान से शास्त्रों का पारगामी विद्वान् बनने और उन पर टीकात्रों का निर्माण करने की क्षमता प्राप्त हो सकती है अथवा नहीं यह तो स्वयं विज्ञों के विचार का विषय है । अद्भुत प्रतिभा के धनी मेधावी मनस्वीजन कठिन से कठिनतर कार्य को सम्पन्न करने में सफलकाम होते हैं तो जन साधारण द्वारा इस प्रकार की कल्पना का किया जाना प्रायः सहज ही हो जाता है कि उस महापुरुष की पीठ पर किसी दैवी शक्ति का वरद हस्त था ।
महामनस्वी प्राचार्य मलय गिरि ने पागम साहित्य पर वीस वृत्तियों का निर्माण कर मुमुक्षुत्रों के साधनापथ को वस्तुतः प्रशस्त किया है। उनके इस महान् कार्य के लिये जैन जगत् उनका चिरकाल तक कृतज्ञ रहेगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org