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३१२ ]
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ ( १६. पडशीतिवृत्ति
२००० १७. सप्ततिका वृत्ति
३७८० १८. वृहत्संग्रहणी वृत्ति
५००० १६. बृहत्क्षेत्रसमास वृत्ति
६५०० २०. मलय गिरिशब्दानुशासन
इन उपलब्ध वृत्तियों के अतिरिक्त प्राचार्य मलयगिरि द्वारा अपनी जिन कृतियों का नामोल्लेख तो अपनी कृतियों में किया गया है किन्तु वर्तमान में वे ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं :
प्राचार्य मलयगिरि की अनुपलब्ध कृतियां १. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति टीका २. अोघ नियुक्ति टीका ३. विशेषावश्यक टीका ४. तत्वार्थाधिगम सूत्र टीका ५. धर्मसारप्रकरण टीका ६. देवेन्द्र नरेन्द्र प्रकरण टीका
आचार्य मलयगिरि किस गण गच्छ अथवा कुल के श्रमणोत्तम थे, इस सम्बन्ध में, प्रमाणाभाव में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। आपने अपनी कृति मलयगिरिशब्दानुशासन के प्रारम्भ में
"एवं कृतमंगलरक्षाविधानः परिपूर्णमल्पग्रन्थ लघुपाय: प्राचार्य मलय गिरिः शब्दानुशासनमारभते ।"
इस प्रकार लिखकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वे एक श्रमण परम्परा के आचार्य पद पर अधिष्ठित थे।
यद्यपि इन्होंने अपनी एक भी कृति में अपने समय का उल्लेख नहीं किया है तथापि आपकी एक कृति आवश्यकवृत्ति में आपने यह लिखकर
"तथा चाहुःस्तुतिषु गुरवःअन्योन्यपक्षप्रतिपक्षभावाद्, यथा परे मत्सरिणः प्रवादाः । नयानशेषानविशेषमिच्छन्, न पक्षपाती समयस्तथा ते ।। अपने समय के सम्बन्ध में स्पष्ट-रूपेण प्रकाश डाल दिया है।
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