SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] वादिदेवसूरि [ २६६ संदेशवाहक मागधमुख्य के मुख से देवसूरि का संदेश सुन कर दिगम्बराचार्य ने उससे कहा :- "कथाजीवी ये श्वेताम्बर कथाएं कहने में निष्णात हैं। यह सब कुछ होते हुए भी देवसूरि ने यह एक पते की बात कही है कि महाराज सिद्धराज जयसिंह की सभा में हम दोनों के बीच शास्त्रार्थ हो। वस्तुतः शास्त्रार्थ से ही तथ्यातथ्य पक्ष का अन्तिम रूप से निर्णय हो सकता है। तुम जानो और देवसूरि से कह दो कि वाद के लिये राज्य सभा में उपस्थित हो जाय। मैं भी इसी समय वहां पहुंच रहा हूं।" आचार्य कुमुदचन्द्र ने तत्काल सुखासन (पालकी) पर आरूढ़ हो दूत के देखते ही देखते राज्य सभा की ओर प्रस्थान कर दिया। पालकी पर बैठते ही आचार्य कुमुदचन्द्र के समक्ष प्राते हुए व्यक्ति को छींक हुई। उस अपशकुन की अवमानना करते हुए कुमुदचन्द्र ने कहा:- “यह तो श्लेष्म के विकार का परिणाम है । हमारे जैसे साहसिक इसकी ओर कोई ध्यान नहीं देते।" यह कहकर सुखासन वाहकों को उन्होंने आदेश दिया कि वे शीघ्र आगे की ओर बढ़ें। पालकी के आगे बढ़ते ही वाम पार्श्व से एक काला विषधर नाग निकला। इस घोर अपशकुन को देखकर कुमुदचन्द्र के अनुयायियों ने कहा :-"प्राचार्य ! आज का दिन आपके लिये अमंगलकारी प्रतीत हो रहा है । अतः आप मठ में लौट जाइये।" प्राचार्य कुमुदचन्द्र ने उन सब लोगों के आग्रह की उपेक्षा करते हुए सस्मित स्वर में कहा :-"यह अपशकुन नहीं है अपितु बड़ा ही श्रेष्ठ शुभ शकुन है । भगवान् पार्श्वनाथ के तीर्थाधिष्ठायक धरणेन्द्र ने मुझे दर्शन देकर यह इंगित किया है कि वे मेरे सहायक हैं और अवश्यमेव मेरी विजय होगी।" देवसूरि ने भी तत्काल राजसभा की ओर प्रस्थान किया। उस समय थाहड़ और नागदेव नामक दो संघाग्रणी श्रीमन्त श्रावक उनकी सेवा में उपस्थित हुए और उन्हें वन्दन नमन के अनन्तरं निवेदन करने लगे :---"प्राचार्यदेव ! गांगिल आदि उच्च राज्याधिकारियों को विपुल धनराशि देकर दिगम्बराचार्य के श्रावकों ने अपने वश में कर लिया है । अब यदि आप आदेश दें तो हम लोग भी उच्च न्यायाधिकारियों को धनराशि देकर अपने पक्षधर बना लें । हमें डर है कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो दिगम्बराचार्य धूस के बल पर कहीं विजयी घोषित न कर दिये जायं ।" देवसूरि ने उन्हें इस प्रकार की कोई कार्यवाही न करने का निर्देश करते हुए कहा :-"आपको इस प्रकार व्यर्थ ही द्रव्य का अपव्यय नहीं करना चाहिये। घूस के बल पर प्राप्त की गई विजय वस्तुतः विजय नहीं, पराजय ही है । देव, गुरु हमारे सहायक हैं । राजा न्यायवादी है । अतः सुनिश्चित रूप से हमारी विजय होगी।" ___ राज्य सभा में शास्त्रार्थ के लिये भली-भांति व्यवस्था हो जाने के अनन्तर दोनों प्राचार्यों को महाराज सिद्धराज जयसिंह ने राजसभा में बुलाया। दोनों वादी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy