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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] जिनदत्तसूरि
[ २७१ परिवारों ने जैन धर्म अंगीकार कर खरतरगच्छ की श्रीवृद्धि की। यहाँ देवपाल आदि श्रावकों ने जिनदत्तसूरि के पास श्रमणधर्म की दीक्षा ग्रहण की।
तदनन्तर विहारक्रम से जिनदत्तसूरि व्याघ्रपुर में आये। वहां जयदेवाचार्य को, जिन्होंने अपने शिष्य परिवार सहित चैत्यवास का परित्याग कर जिनदत्तसूरि के पास उपसम्पदा ग्रहण की थी, रुद्रपल्ली और उसके पास-पड़ोस के क्षेत्र में ही विचरण करते रहने और जिनशासन का प्रचार-प्रसार करने का आदेश दिया ।
व्याघ्रपुर में कतिपय दिनों तक रहकर जिनदत्तसूरि ने श्री जिनवल्लभसूरि द्वारा प्ररूपित चैत्यगृह-विधि पर "चच्चरी" (चर्चरी) नामक ग्रन्थ की रचना कर एक टिप्पणक पर लिखवाया और वह चच्चरी टिप्पणक उन्होंने आसल प्रमुख श्रावकों को चैत्यगृह विधि सम्बन्धी खरतरगच्छ की मान्यताओं का परिज्ञान कराने के लिए भेजा। जिस समय जिनदत्तसूरि के प्रमुख श्रावक पौषधशाला में एकत्रित हो चच्चरी टिप्पणक को बस्ते में से बाहर निकाल रहे थे, उस समय देवधर नामक एक उद्धत युवक ने झपटकर वह टिप्पणक श्रावकों से छीन लिया और यह कहते हुए कि यह चच्चरी टिप्पणक नहीं, कच्चरी टिप्पणक है, उस चच्चरी टिप्पणक को फाड़ दिया। श्रावकों ने देवधर के पिता को उसकी उद्दण्डता को बात सुनाई। उसने क्षमायाचना करते हुए कहा कि देवधर वस्तुतः बड़ा ही उद्धत, उद्दण्ड और मदोन्मत्त है । तथापि मैं उसे समझाऊंगा कि वह भविष्य में इस प्रकार की उच्छृखलता न दिखाये।
श्रावकों ने जिनदत्तसूरि की सेवा में सूचना भेजी कि "चच्चरी टिप्पणक" हमारे पास पहुँच गया था, पर उसको हम पढ़ें, इससे पहले हो देवधर ने उसे फाड़ डाला।
जिनदत्तसूरिने "चच्चरी टिप्पणक" की दूसरी प्रति तैयार करवा कर आसल आदि श्रावकों के पास भिजवाई और उन्हें निर्देश दिया कि देवधर को भला बुरा कुछ भी न कहा जाय । उसे शीघ्र ही सत्पथ की प्रतीति हो जायेगी और वह गच्छ की उन्नति में सहायक सिद्ध होगा।
"चच्चरी टिप्पणक" की दूसरी प्रति पहुँचते ही उन्होंने उसे पढ़ा। इससे श्रावकों की अनेक शंकाओं का समाधान हुआ। देवधर को जब यह ज्ञात हुआ कि "चच्चरी टिप्पणक" की एक प्रति उसने फाड़ दी थी परन्तु अब उसकी दूसरी प्रति आई है, तो उसे यह अनुभव हुआ कि "चच्चरी टिप्पणक" वस्तुतः कोई महत्त्वपूर्ण कृति है । अतः उसे अवश्यमेव पढ़ना चाहिये।
इस प्रकार निश्चय कर देवधर अपने घर की छत से पौषध शाला में प्रविष्ट हुआ और उसने चच्चरी टिप्पणक को बड़ी उत्सुकता के साथ पढ़ना प्रारम्भ किया।
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