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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
सभा की प्रतिष्ठा बचाने वाले जिनवल्भसूरि के प्रति राजा नरवर्म ने मन ही मन हार्दिक कृतज्ञता प्रकट की और उसने उन दोनों विद्वानों को वस्त्राभूषण पुरस्कार आदि प्रदान कर विदा किया ।
कालान्तर में जब जिनवल्लभसूरि धारानगरी गये तो राजा नरवर्म ने बड़ी श्रद्धा और भक्ति से उनका सम्मान करते हुए तीन लाख पारुस्थ ( मुद्रा विशेष ) और तीन गांव भेंट स्वरूप स्वीकार करने की प्रार्थना की। जिनवल्लभगरण ने राजा की प्रार्थना के उत्तर में कहा :- "राजन् ! हम पंच महाव्रतधारी साधु हैं । धनराशि और ग्रामादि को भेंट रूप में स्वीकार करना तो दूर, हम तो धन के नाम पर, परिग्रह के नाम पर किसी भी मुद्रा का स्पर्श तक नहीं कर सकते । यदि यह धनराशि और तीनों ग्रामों की आय किसी सत्कार्य में ही लगाना चाहते हैं तो चित्तौड़ में श्रावकों ने कुछ ही समय पूर्व जो दो जिन मन्दिर बनवाये हैं, उनकी व्यवस्था के लिये यह दान कर दीजिये ।
राजा इस प्रकार जिनवल्लभ गरिण की निस्पृहता देखकर बड़ा ही चमत्कृत एवं सन्तुष्ट हुआ और उसने चित्रकूट के दोनों जिन मन्दिरों के लिए प्रतिदिन दो पारुस्थ के हिसाब से शाश्वत दान की राजाज्ञा प्रसारित की ।
इस पट्टावली में यह भी उल्लेख है कि जिनवल्लभगरण की प्रसिद्धि चारों और प्रसृत हो गई और नागौर, नढ़वर, मरुकोट्ट, विक्रमपुर आदि नगरों के श्रावकों ने चैत्यवासी परम्परा का परित्याग कर आपको अपना गुरु बनाया । मरुकोट्टनगर के श्रावकों की प्रार्थना पर आपने एक समय उपदेशमाला परं व्याख्यान देना प्रारम्भ किया और 'सम्वच्छरमुसभजिरगो' इस एक गाथा पर आपने छः मास पर्यन्त व्याख्यान दिया । आपके व्याख्यानों से श्रावक बड़े सन्तुष्ट हुए । एक दिन व्याख्यान भवन में व्याख्यान देने के पश्चात् जब वे अपनी वसति में अपने श्रावक समूह के साथ लौटे तो उसी समय उन्होंने देखा कि एक दूल्हा घोड़े पर आरूढ़ हो विवाह के लिए जा रहा है और उसके पीछे स्त्रियों का समूह मधुर कण्ठ स्वर से गीत गाता हुआ जा रहा है । जिनवल्लभसूरि के मुख से हठात् दीर्घ निश्वास निकल पड़ी । श्रावकों द्वारा कारण पूछे जाने पर जिनवल्लभसूरि ने कहा - विचित्र है कर्म की गति । ये जो स्त्रियां इस समय गाती हुई जा रही हैं, कुछ ही क्षणों के पश्चात् करुरण क्रन्दनपूर्वक रुदन करती हुई लौटेंगी ।
कुछ ही क्षणों पश्चात् अपने गुरु की भविष्यवाणी को सत्य हुआ देख श्रावकों के आश्चर्य का पारावार नहीं रहा । कुछ ही क्षणों पूर्व जो स्त्रियां गाती हुई जा रही थीं वे सब रोती हुई लौट रही थीं। स्त्रियों के रोने का कारण यह था कि जिस समय दूल्हा सीढ़ियों पर चढ़ रहा था उसका पैर फिसल गया और वह घरट्ट के ऊपर गिर पड़ा । तत्काल उसका पेट पूरी तरह फट गया और उसका प्राणान्त हो गया ।
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