SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ महापुरुष का चित्तौड़ निवासियों के भाग्य से ही चित्तौड़ में पदार्पण हुआ है। नगर में प्रसृत जिनवल्लभ की कीर्ति से आकर्षित होकर कतिपय श्रावक भी जिनवल्लभसूरि की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने जिनवल्लभसूरि के प्रवचनों में आत्मोद्धार के सम्बन्ध में आगमिक उपदेश सुनकर अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव किया। आगम वचन के अनुसार ही जिनवल्लभसूरि के श्रमणाचार को देखकर श्रावक साधारण, श्रावक सड्ढक आदि अनेक श्रावकों ने वाचनाचार्य जिनवल्लभगरिण को अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया। अपने गुरु के तलस्पर्शी आगमज्ञान और उनकी ज्योतिषशास्त्र में निष्णातता को देखकर वे सभी श्रावक जिनवल्लभसूरि के परम आज्ञाकारी श्रावक हो गये । एक दिन श्रावक साधारण ने जिनवल्लभसूरि से प्रार्थना की कि वे कृपा कर उसे बीस हजार की धनराशि का परिग्रह परिमाण करवाएँ। जिनवल्लभसूरि ने साधारण श्रावक को बार-बार समझाकर बीस हजार द्रम्म के स्थान पर लाख द्रम्म का परिग्रह परिमाण करवाया। परिग्रह परिमारण का नियम करने के पश्चात् श्रावक साधारण की सम्पत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगी और उसकी गणना लक्षाधिपति श्रेष्ठियों में की जाने लगी। इस अदृष्ट अद्भुत चमत्कार से न केवल श्रावक साधारण ही अपितु सभी श्रावक बड़े चमत्कृत और प्रभावित हुए। वे सब गुरु के छोटे-बड़े सभी प्रकार के आदेशों का पालन करने के लिए तत्पर रहने लगे। इस प्रकार जिनवल्लभ सूरि का प्रभाव चित्तौड़ दुर्ग और उसके आसपास के जैन धर्मावलम्बियों पर उत्तरोत्तर बढ़ता ही चला गया। आसोज कृष्णा त्रयोदशी के दिन जिनवल्लभ गणि ने अपने श्रावकों के समक्ष यह बात रखी कि यदि आज भगवान् महावीर के देवगृह में भगवान को वन्दन किया जाय तो संघ का बड़ा कल्याण होगा क्योंकि आज श्रमण भगवान् महावीर का गर्भापहार नामक छठा कल्याणक है। क्योंकि इस समय चित्तौड़नगर * में एक भी विधि चैत्य नहीं है इसलिये चैत्यवासी परम्परा के किसी भी मन्दिर में जाकर भगवान् के पष्ठ कल्याणक के उपलक्ष्य में उनको वन्दना करनी चाहिये । श्रावक वर्ग ने अपने गुरु के आदेश को शिरोधार्य करते हुए कहा-"भगवन् ! जो आपको अभीष्ट है वही हम करेंगे।" तदनन्तर सभी श्रावक नहा धोकर निर्मल वस्त्र पहने अपने हाथों में पूजा की पवित्र सामग्री लिये अपने गुरु के साथ भगवान् के मन्दिर में जाने के लिए उद्यत हुए। जिन चैत्य में बैठी हुई चैत्यवासी परम्परा की एक साध्वी ने जब जिनवल्लभसूरि को अपने श्रमणोपासक समुदाय के साथ मन्दिर की ओर आते देखा तो उसने आगे बढ़कर श्रावकों से पूछा-"क्या आज कोई विशिष्ट आयोजन है ? कोई पर्व विशेष है ?" जिनवल्लभसूरि के एक श्रावक ने उसके उत्तर में कहा-"हां, आज वीर गर्भापहार नामक भगवान महावीर का छठा कल्याणक है इसलिए हम लोग भगवान् के वन्दन पूजन के लिए यहां आये हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy