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________________ २३० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ तक लिंगायतों के धर्मोन्माद ने जिस भीषण रूप से जैनों का संहार किया उसकी झलक उपरि वरिणत श्री शैलम पर अवस्थित श्री मल्लिकार्जुन मन्दिर के स्तम्भों पर उटैंकित लिंगायत प्रधान लिंगा के अभिलेख से प्रकट है।। जहां तक वैष्णव सम्प्रदाय के जैन विरोधी अभियान का प्रश्न है वह श्री रामानुजाचार्य के जीवनकाल तक शान्तिपूर्ण रहा। उसमें जैनों का न तो संहार ही किया गया और न बलात् धर्म परिवर्तन ही। रामानुजाचार्य के हाथ से लिखे हुए एक ताड़पत्रीय धार्मिक अनुशासन से यह स्पष्टतः सिद्ध हो जाता है कि उन्होंने अपने अनुयायियों को जैनों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार करने के निर्देश दिये और जैन मन्दिरों को भी वैष्णव मन्दिरों के समान ही संरक्षण देने के आदेश दिये। श्री रामानुजाचार्य पर्याप्त समय तक तिरुनारायणपुर ग्राम में, जो साम्प्रतकाल में मेलकोटे के नाम से विख्यात है, रहे। वहां से सन् ११२५ में रंगपुर के लिए प्रस्थान करते समय उन्होंने अपने अनुयायियों को जो आदेश दिये वे स्वयं उनके हाथों द्वारा एक ताड़पत्र पर लिखे गये थे। वह समस्त वैष्णव धर्मावलम्बियों के लिये एक आदेशात्मक अनुशासन था। उसकी प्रतिलिपि यहां यथावत् रूप में दी जारही है और उसी का सरल संस्कृत भाषा में सारपरक रुपान्तर भी नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है : श्री बी. वी. नरसिंहाचार्य स्वामिन्, सुपुत्र श्री बी. वी. राघवाचार्य स्वामी, श्री वेंगिपुरम् नम्बीमुत्र (तिरुम्मलिहइ) तिरुनारायणपुरम् मेलकोटे, पाण्ड्यपुर ताल्लुक, मण्ड्या जिला के घर में विद्यमान स्वयं श्री रामानुजाचार्य द्वारा लिखित ताड़पत्र की यह प्रतिलिपि है। __ "वर्द्धताम् शासनं विष्णोः , शासनं लोकशासनम् । पिंगल सम्वत्सरे मकर शुक्ल पुनर्वसु नन्नाल तिरु नारायण पुरत्ति लुल्ल मुदलि हलक्क नाम तिरुवरंगम् पौंहु पोदु शैय्युम्....... वेन्नेन्नाल तिरुनारायणपुरत्तिन् समीपमुल्लि शैवालयत्तैयुम् अदिन रह उल्ल पल घटत्ति लील्ल जैनालयतैयुम् अवरक्कलुडैय सद्धर्मत्तैयुम् प्रार कलंक वरामल्लु परस्पर सहक्कात्तुड़ने पाराट्टिकोण्डु परस्परं भावयन्तः, श्रेयः परमवाप्स्यथ । रन्नुमाप्पोल्ले इरुक्कवुम्, नमो नमो यामुनाय, यामुनाय नमोनमः । इरामानुशनु" (रामानुजाचार्य:) स्वयं रामानुजाचार्य के हस्ताक्षरों से लिखित इस ताड़पत्र के आलेख का, इसके धारक श्री बी. वी. नरसिंहाचार्य स्वामिन् ने अपने हाथों से संस्कृत भाषा में निम्नलिखित रूप में सारांश लिखा: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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