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________________ दक्षिण में जैन संघ पर..." [ २१३ "भगवान् शंकर और माता पार्वती एक समय कैलाश पर्वत पर एक शिवभक्त महात्मा की कुटिया में अतिथि के रूप में विराजमान थे । उस समय नारद–‘नारायण नारायण' का सस्वर जाप करते हुए भगवान् शंकर के समक्ष उपस्थित हुए । नारद ने भगवान् शंकर से निवेदन किया"आर्यधरा पर जैनों और बौद्धों की शक्ति प्रबल रूप से बढ़ गई है ।" सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] इस पर भगवान् शंकर ने अपने गरण वीरभद्र को प्रज्ञा प्रदान करते हुए कहा - " वीरभद्र ! तुम धरती पर मानव के रूप में जन्म ग्रहण करो और जैनों तथा बौद्धों की शक्ति को अवरुद्ध कर उन पर अपना अधिकार स्थापित करो ।" भगवान् शिव की आज्ञा प्राप्त होते ही वीरभद्र ने पुरुषोत्तम पट्ट (भट्ट) नामक एक ब्राह्मरण को स्वप्न में सूचित किया- “ द्विजोत्तम ! तुम्हें शीघ्र ही एक पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी ।" पुरुषोत्तम भट्ट का स्वप्न साकार हुआ और उसकी पत्नी ने समय पर एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया । माता-पिता ने उस बालक का नाम राम रक्खा । बालक राम शैशवकाल से ही शिव का भक्त था और ज्यों-ज्यों वह बालक बड़ा होता गया त्यों-त्यों उसका अधिकांश समय भगवान् शंकर की आराधना में व्यतीत होने लगा । " इस कारण वह बालक एकान्तद रमैया के नाम से विख्यात हुआ ।" इस कथानक में आगे बताया गया है कि यही एकान्तद रमैया के नाम से विख्यात बालक राम आगे चलकर अपने देश में जैन धर्म के वर्चस्व को समाप्त करने में सफलकाम हुआ । इस लोक कथानक में आगे यह बताया गया है कि जब शिव का परम भक्त रमैया भगवान् शंकर की पूजा करता था तो उस समय जैनों ने उसे ललकारा कि यदि तुम्हारे आराध्य देव में शक्ति है तो उसका चमत्कार दिखाओ । एकान्तद रमैया ने प्रमुख जैन धर्मानुयायियों की इस ललकार को सुनकर भगवान् शंकर की शक्ति का चमत्कार बताने के उद्देश्य से अपने हाथ से ही अपना सिर काटकर धड़ से अलग कर दिया । अपना सिर काटने से पहले एकान्तद रमैया ने जैनों से यह प्रतिज्ञा करवा ली थी कि यदि वह भगवान् शंकर की शक्ति का चमत्कार बताने में सफल हो गया तो जैनों को अपनी वसतियां छोड़कर उस प्रदेश से बाहर चले जाना होगा । जैनों ने ही उसे कहा था कि तुम अपने हाथ से अपना सिर काटकर अपने धड़ से अलग कर दो । यदि तुम्हारे आराध्य देव की शक्ति से तुम्हें अपना सिर पुन: प्राप्त हो जायगा -यदि तुम पुनः जीवित हो जाओगे तो हम अपनी प्रतिज्ञा का निर्वहन करेंगे । इस प्रतिज्ञा के पश्चात् एकान्तद रमैया ने अपना सिर अपने हाथ से काट डाला । लेकिन बड़े आश्चर्य की बात हुई कि दूसरे ही दिन एकान्तद रमैया पूर्ववत सशिर व सशरीर जैनों के समक्ष उपस्थित हुआ और उनसे अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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