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________________ २१२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ प्रसार पर व्यय कर रहा है तो उसने राज्यकोष की देख-रेख का कार्य अपने हाथ में ले लिया। ___ इस पर मन्त्री बसवा ने महाराजा विज्जल को धोखे से जहर दिलवाकर मरवा डाला । विज्जल के राजकुमारों ने बसवा को मार डालने के लिये उसके घर पर आक्रमण किया किन्तु अपराधी बसवा वहां से पहले ही भाग निकला था। राजकुमारों ने अपनी सेना के साथ बसवा का पीछा किया। धारवाड़ के पास बसवा ने जब यह देखा कि विज्जल के राजकुमार अपनी सेना के साथ उसका पीछा कर रहे हैं तो उसने अपने बचाव का और कोई उपाय न देख कर एक कुएं में छलाँग लगा ली। बसवा का प्राणान्त हो गया। किन्तु उसकी गणना धर्म पर प्राण न्यौछावर करने वाले महावीर के रूप में की जाने लगी। लिंगायतों ने चारों ओर राजद्रोह का झंडा उठा कर जैन धर्मावलम्बियों का सामूहिक संहार करना प्रारम्भ कर दिया। लिंगायत साधुओं द्वारा बनाये गये क्रान्तिगीत जन-जन की जिव्हा पर गजरित होने लगे। उन क्रान्तिगीतों का जन-जन के मन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि विशाल कलचुरी राज्य की सीमाओं में जैनों पर अनेक प्रकार के भीषण अत्याचार किये जाने लगे। वरिंगजग जाति, जो शताब्दियों से जैन धर्म की अनुयायिनी और कर्णाटक की सर्वाधिक सम्पत्तिशालिनी जाति गिनी जाती थी, लिंगायतों ने उस जाति का बलात् सामूहिक धर्म परिवर्तन करवाकर पूरी की पूरी वणिजक जाति को जैन से लिंगायत धर्म की अनुयायिनी जाति बना दिया । जब तक वरिंगजक लोग जैन धर्म के अनुयायी रहे वे शताब्दियों से न केवल अपने प्रदेश में ही अपितु दूर-दूर के प्रदेशों एवं क्षेत्रों में भी जैन धर्म के प्रचार प्रसार के लिये प्रचुर मात्रा में धन व्यय करते रहे । वरिंगजक जाति के बलात् जैन से लिंगायत बना दिये जाने पर जैन धर्म पर एक ओर तो जैनधर्म के अनुयायियों की संख्या में कमी होने का भयंकर आघात पहुंचा और दूसरी ओर उस धनाढ्य जाति से जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये प्राप्त होने वाली विपुल धनराशि के नितान्त अवरुद्ध हो जाने के कारण जैनधर्म के प्रचार प्रसार कार्य पर बड़ा ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। लिंगायतों के मनोबल को उत्तरोत्तर बढ़ाते रहने वाली और जैन धर्मानुयायियों के मनोबल को पूर्णतः कुठित कर देने वाली अनेक जन कथाएं लिंगायत सम्प्रदाय के कर्णधारों द्वारा कर्णाटक एवं आन्ध्र प्रदेश में प्रसारित की गई। इन जन गीतों एवं जन कथानकों ने एक प्रकार से आन्ध्र प्रदेश में तो जैनों का अस्तित्व तक सदा के लिये समाप्त कर दिया। इस प्रकार की एक जनकथा सर रामकृष्ण भण्डारकर द्वारा प्रकाश में लाई गई है । उस कथानक का नाम "महामण्डलेश्वर कामदेव" है । इस पर काल का कोई उल्लेख तो नहीं है किन्तु अनुमान किया जाता है कि यह ईस्वी सन् ११८१ से १२०३ के बीच की है। उसमें जो कथानक है वह इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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