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________________ २१० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ बीसवीं शती में भी भारतीय अद्यावधि अपनी पूर्व स्थिति के अनुरूप पूर्णतः अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाये हैं। विक्रम की आठवीं शती से प्रारम्भ हुए एवं अनेक शताब्दियों तक चलते रहे विदेशी आततायियों के आक्रमणों से भारत के शासक वर्ग की, कुबेरोपम सम्पत्ति के स्वामी व्यापारी वर्ग की और कुल मिला कर भारतीय नागरिकों के प्रत्येक वर्ग की जो जन, धन एवं मनोबल की अपूरणीय क्षति हुई, उसके स्मरणमात्र से ही प्रत्येक सहृदय सिहर उठता है । भारत पर अपने १७ बार के आक्रमणों के दौरान की गई लूट से अपने देश को मालामाल और अपनी गजनी की हुकूमत को एक बहुत बड़ी शक्तिशाली हुकूमत का स्वरूप देने के पश्चात् वि० सं० १०८७ (वीर नि० सं० १५५७) में महमूद गजनवी ने अपनी इहलीला समाप्त की। महमूद की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र अपार दौलत और सत्ता के लिये परस्पर लड़ने लगे। महमूद के छोटे पुत्र मसूद ने अपने बड़े भाई सुलतान मुहम्मद को गजनी के तख्त से हटा उसे अन्धा बना दिया और स्वयं गजनी राज्य का स्वामी बन गया। थोड़े ही समय पश्चात् गजनी की सेना ने मसूद को पदच्युत कर, उसके द्वारा अपदस्थ एवं अन्ध किये गये उसके बड़े भाई महमूद को पुनः गजनी का सुलतान बना दिया। कुछ ही समय पश्चात् मुहम्मद के पुत्र अहमद ने वीर नि० सं० १५६६ में मसूद को मौत के घाट उतार दिया। उसी वर्ष मसूद के पुत्र मौदूद ने मुहम्मद को मार कर गजनी के तख्त पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार महमूद गजनवी के उत्तराधिकारी पुत्र-पौत्र आदि परस्पर ही लड़-भिड़ कर कट मरे और महमूद गजनवी द्वारा संस्थापित एवं भारत से लूट में प्राप्त अपार दौलत के बल पर सुदृढ़ की गई गजनी की सल्तनत पर अन्ततोगत्वा वि०. सं० १२०६ तदनुसार वीर नि० सं० १६७६ के आसपास सैफुद्दीन गौरी के भाई अल्लाउद्दीन हुसैन गौरी ने अधिकार कर गजनी के तुर्क राज्य का अन्त कर दिया । __उपर्युक्त अवधि के बीच महमूद गजनवी की मृत्यु के लगभग १४ वर्ष पश्चात् वीर नि० सं० १५७१ में दिल्ली के हिन्दू राजा ने हांसी, थाणेश्वर, सिन्ध और नगरकोट पर अधिकार कर वहां से मुसलमानों को भगा दिया। वहां मन्दिरों में मूर्तियों की प्रतिष्ठा-पूजा एवं मन्दिरों के नवनिर्माण आदि के कार्य पुनः प्रारम्भ हुए। उसी अवधि के आस-पास पंजाब के छोटे-बड़े राजाओं ने मिल कर लाहौर पर भी आक्रमण किया किन्तु ७ मास के कड़े संघर्ष के अनन्तर पंजाब के हिन्दू राजाओं की युद्ध में पराजय हो गई और इस प्रकार लाहौर का राज्य गजनवी के सुलतानों के अधीन ही रहा । इस प्रकार वीर निर्वाण की सोलहवीं शताब्दी का अधिकांश समय भारतीय इतिहास की दृष्टि से बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण एवं भारतवासियों के लिये वस्तुतः बड़ा त्रासकारी रहा। ०००००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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