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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
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the land devoted the best part of their energies in mutual fighting. The enormous wealth of the country was spent in building and enriching the temples which they proved unable to protect; whereas the most appropriate use for these resources should have been to organise a common defence against the invaders, backed by a national effort On the contrary it was the very fabulous wealth of these defenceless temples and sacred towns which invited the foreigners and contributed greatly to the consequent disaster.
History had no meaning for the Hindu Kings, who presided over the destinies of this woe-striken land. The repeated warnings of the past went unheeded. The onslaught began with the Arab conquest of Sindh in the eighth century when the Hindus got a fore taste of what might happen in the future. But it assumed formidable proportions under the lead of Mahmud at the end of the tenth and beginning of the eleventh century. The next century and a half witnessed a cessation of this onslaught, barring a few comparatively minor and irregular raids. But when the offensive was resumed by another Turk, even though he was far inferior to Mahmud, he found the victim as ready for slaughter as it was two centuries earlier.
महमूद गजनवी द्वारा भारत पर किये गये संहारक सत्रह आक्रमरणों के समय भारत में अनेक वर्षों तक रहकर भारत की तत्कालीन दयनीय अस्तव्यस्त दशा के प्रत्यक्ष.द्रष्टा मुसलमान इतिहासकार अबुरिहां अल्बेरूनी ने और साम्प्रतयुगीन लब्धप्रतिष्ठ इतिहासविद् विद्वान् आर. सी. मजूमदार ने विदेशी आक्रान्ताओं के हाथों भारत की पुनः पुन: पराजय पर पराजय और भारतीय राजाओं के अधःपतन एवं विनाश के कारणों पर उपरिवरिणत रूप में जो प्रकाश डाला है, उससे स्पष्टतः यही प्रकट होता है कि विक्रम की आठवीं-नौवीं शताब्दी से ही भारतवासियों ने सामूहिक रूप से "सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह नौ वीर्य करवावहै, तेजस्वीनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै"-इस सर्वसिद्धिप्रदायी महामन्त्र को भुलाना प्रारम्भ कर दिया था। इस महामन्त्र के विस्मरण के परिणामस्वरूप आततायियों द्वारा भारतीयों का अनेकों बार भीषण संहार किया गया, भारत की अतुल-अपरिमेय धन-सम्पदा को लूटा गया, भारतीयों को बलात् धर्मपरिवर्तन के लिये बाध्य किया गया और आर्थिक, राजनैतिक एवं मनोवैज्ञानिक आदि सभी दृष्टियों से भारतवासियों को ऐसी अपूरणीय क्षति पहुंचाई गई कि १००० वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरान्त इस
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