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________________ पूर्व पीठिका अगा करुणासिन्धु जिनशासन - नायक विश्वबन्धु श्रमरण भगवान् महावीर के अचिन्त्य प्रताप का ही प्रतिफल है कि प्रद्ययुगीन महान् अध्यात्म योगी जैनाचार्य श्री हस्तिमलजी महाराज के निर्देशन में जैनधर्म का भोग युग एवं कर्म युग के संगमकाल से प्रारम्भ कर श्रमरण भगवान् महावीर के निर्वाणोत्तर १४७५ वर्ष तक के प्रति सुदीर्घ काल का इतिहास प्रस्तुत ग्रन्थमाला के तीन भागों में नाति विस्तृत-नाति संक्षिप्त शैली में प्रकाशित कर दिया गया है । अब इस प्रस्तुत किये जा रहे चतुर्थ भाग में वीर निर्वारण सम्वत् १४७६ से वीर निर्वारण सम्वत् २००० तक के इतिहास का समावेश किया जा रहा है । इसमें भी प्राचार्यश्री द्वारा प्रारम्भ से ही अपनाई गई नयी विधा के अनुरूप धर्म के इतिहास के साथ-साथ संक्षेपतः पूरी अवधि का सामाजिक एवं राजनैतिक इतिहास भी प्रस्तुत किया जा रहा है । इस इतिहास ग्रन्थमाला के प्रथम भाग में विश्व के सकल चराचर प्राणियों के सच्चे सखा एवं एकमात्र शरण्य ऋषभादि महावीरान्त चौबीस तीर्थंकरों के काल का विशद् विवरण प्रस्तुत किया गया है । उस प्रथम भाग में चौबीस तीर्थंकरों के पावन जीवनवृत्त के साथ-साथ बारह चक्रवर्तियों, नव बलदेवों, नव वासुदेवों और नव प्रतिवासुदेवों का भी जीवनवृत्त देने का प्रयत्न किया गया । उसी भाग में उस काल की राजनैतिक स्थिति का भी इतिहास यथाशक्य प्रस्तुत किया गया है, जिसमें राजनीति के आदि प्रवर्त्तक आदि राजा भगवान् ऋषभदेव के सुपुत्र चक्रवर्ती भरत से लेकर शिशुनागवंशी सम्राट् श्रेणिक, बिम्बसार और उनके उत्तराधिकारी सम्राट् कुरिणक के शासनकाल तक का विशद् इतिवृत्त भी सम्मिलित है । साम्प्रतयुगीन पूर्व एवं पश्चिम के अनेक अग्रगण्य इतिहासज्ञ इस बात पर प्राश्चर्य प्रकट करते रहे हैं कि जहां एक प्रोर जैनागमों में श्रीकृष्ण वासुदेव, उनकी महीषियों, उनके पुत्रों-पौत्रों तथा अनेक परिजनों का परिचय उपलब्ध होता है, वहां दूसरी ओर वैदिक परम्परा के किसी भी ग्रन्थ में श्रीकृष्ण के ताऊपुत्र (भाई) बावीसवें तीर्थंकर भगवान् अरिष्टनेमि का स्पष्टतः नामोल्लेख तक क्यों नहीं है । इतिहास के विद्वानों की इस प्रकार की प्राशंका ने इस कमी को दूर करने की एक उत्कट अभिलाषा हमारे अन्तर्मन में उत्पन्न की । एतदर्थ वैदिक परम्परा के प्राचीन प्रामाणिक ग्रन्थों और साहित्य का गहराई से अवलोकन किया गया तो वैदिक • परम्परा के ही प्राचीन प्रामाणिक ग्रन्थ हरिवंश पुराण में न केवल भगवान् अरिष्टनेमि ही, अपितु उनको वंश परम्परा का पूर्ण वंश वृक्ष ही प्राप्त हो गया, जिसे भगवान् श्ररिष्टनेमि के प्रकरण में यथा - स्थान प्रस्तुत किया गया है । इससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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