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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] अभयदेवसूरि [ १७५ इस पद की ओर से अपने मन, मस्तिष्क और नेत्र युगल को पता नहीं क्यों मोड़ लेते हैं । 'पागम अष्टोत्तरी' को अन्यकर्तृक ग्रन्थ सिद्ध करने का मोघ प्रयास करने वाले विद्वान् क्या अभयदेवसूरि द्वारा निर्मित स्थानाङ्गवृत्ति को भी किसी अन्य अज्ञातनामा विद्वान् की कृति सिद्ध करने का साहस कर सकते हैं ? इस प्रकार सत्य के अनन्य उपासक आचार्यश्री अभयदेवसूरि ने उपरिलिखित तथ्य को प्रकाश में लाकर इतिहासविदों, लेखकों, सत्य की खोज में संलग्न शोधकों और जिनशासन के अभ्युदयोत्कर्षापेक्षी मनीषियों को गहन चिन्तन-मनन एवं शोध की दिशा में नया मार्गदर्शन किया है। इन तथ्यों से यह भलीभांति सिद्ध होता है कि अपने समय के अप्रतिम प्रतिभाशाली नवाङ्गीवृत्तिकार अभयदेवसूरि उच्च कोटि के आगम-मर्मज्ञ, सागर को गागर में समा देने की अद्भुत् क्षमता के धनी तत्त्व-विवेचक एवं सत्य के परमोपासक, विरोधियों को विनयावनत . बना देने की चमत्कारिणी शक्ति से सम्पन्न एवं दुस्साध्य को साध्य सिद्ध करने में सक्षम साहसी महापुरुष थे । उनका समग्र जीवन जिनशासन के उत्कर्षकारी कार्यों के लिये समर्पित रहा। विक्रम सं० १०८८ में १६ वर्ष की किशोर वय में उन्हें प्राचार्यपद पर अधिष्ठित किया गया, इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि वे कैसी असाधारण प्रतिभा के धनी थे। ५१ वर्ष तक प्राचार्यपद पर रहकर उन्होंने विशाल वृत्तिसाहित्य के अतिरिक्त विविध विषयों पर विपुल ग्रन्थों की रचना की । विक्रम सं० ११३६ में जिस समय वे कपड़गंज (गुर्जर प्रदेश) में विराजमान थे, उस समय एक दिन उन्होंने अपनी आयु का अवसानकाल समीप देख आलोचनापूर्वक अनशन किया और वे समाधि अवस्था में ६७ वर्ष की आयु पूर्ण कर स्वर्गस्थ हुए। खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावलीकार ने स्वर्गस्थ होने का काल निर्देश न कर केवल यही लिखा है कि वे (पाटण में) समाधिपूर्वक चतुर्थ देवलोक में गये ।' ___अभयदेवसूरि के स्वर्गारोहण काल के सम्बन्ध में दो प्रकार की मान्यताएँ जैन वाङ्मय में उपलब्ध होती हैं । खरतरगच्छीया कतिपय पट्टावलियों में अभयदेवसूरि का स्वर्गारोहण काल वि. सं. ११३५ उल्लिखित है तथा दूसरी मान्यतानुसार उनका स्वर्गवास वि. सं. ११३६ में कपड़गंज में होने का भी उल्लेख है। प्रभावकचरित्रकार ने प्रभावक चरित्र में अभयदेवसूरि के स्वर्गगमन काल का उल्लेख न कर केवल यही लिखा है कि अभयदेवसूरि पाटण नगर में पाटणाधीश कर्णराज के राज्यकाल में स्वर्गस्थ हुए।' गुर्जरेश चालुक्यराज कर्ण का शासनकाल प्राचीन १. नवाङ्गवृत्त्या भव्यजीवान् सुखिनः कृत्वा कालक्रमेण सिद्धान्तविधिना समाधानेन चतुर्थ देवलोकं प्राप्ता अभयदेव सूरयः । खर. ग. गु. पृष्ठ ६ । २. प्रभावक चरित्र. अभयदेवसूरि चरितम् श्लोक १७२-१७३, पृष्ठ १६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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