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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
उभार नहीं होने पाया है । भाषा सरल एवं मुहावरेदार है । उसमें गति एवं प्रवाह है ।
परिशिष्ट के चार्ट बहुत उपयोगी हैं। पुस्तक पठनीय और संग्राह्य है । डॉ० कमलचन्द सोगानी
" इतिहास समिति, जयपुर एक बहुत ही उत्तम कार्य में लगी है । आचार्यश्री के अथक परिश्रम ने ऐसी उत्तम पुस्तक हमें प्रदान की है ।
तीर्थंकरों के परम्परागत इतिहास पर अभी तक कोई पुस्तक ऐसी व्यव - स्थित देखने को नहीं मिली। इसमें लेखक ने सभी दृष्टियों से तीर्थंकरों के चरित्र लिखने में सफलता प्राप्त की है। फुट नोट्स के मूल ग्रन्थों के सन्दर्भ से कृति पूर्ण प्रमाणिक बन गयी है ।
तीर्थ कर ( इन्दौर ) जनवरी, १६७२ समीक्षक : डॉ० नेमीचंद जैन
( आलोच्य ग्रन्थ इस दशक का एक महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय प्रकाशन है । इसमें जैन तीर्थंकर परम्परा को लेकर तुलनात्मक और वैज्ञानिक पद्धति से तथ्यों को प्राकलित, समीक्षित और मूल्यांकित किया गया है । यों जैन धर्म के इतिहास को लेकर कई छुटपुट प्रयत्न हुए हैं, किन्तु उक्त ग्रन्थ का इस संदर्भ में अपना स्वतन्त्र महत्व है । इसकी सामग्री प्रामाणिक, विश्वसनीय, व्यवस्थित और वस्तून्मुख है ।
ग्रन्थ की महत्ता इसमें नहीं है कि इसने किस तीर्थंकर की कितनी सामग्री दी है वरन् इसमें है कि इसने पहली बार इतनी प्रामाणिक, वैज्ञानिक, विश्वसनीय, तुलनात्मक और गवेषणात्मक ढंग से सारी सामग्री को व्यवस्थित किया हैं । समग्रता और समीक्षात्मक दृष्टि उक्त ग्रन्थ की प्रमुख विशेषता है। दूसरी बात यह भी महत्वपूर्ण है कि इसमें न केवल अथक श्रम और सूक्ष्म आलोडन के साथ तथ्यों की समीक्षा हुई है वरन् सारा प्रकाशन एक सुव्यवस्थित ऐतिहासिक अनुशासन से बद्धमूल है । स्वतन्त्र गवेषणात्मक दृष्टि के कारण ही जैनेतर स्रोतों का भी उदारतापूर्वक उपयोग किया गया है और जैन दृष्टि से लिखे जाने पर भी तथ्यों की प्रतिरंजना से बचा गया है । (प्राचार्य श्री हस्तीमलजी के सुयोग्य निर्देशन का मरिण - काँचन योग सर्वत्र द्रष्टव्य है । उनके द्वारा लिखे गये प्राक्कथन ने ग्रन्थ के महत्व को स्वयंमेव बढ़ा दिया है। प्राक्कथन में कई मौलिक तथ्यों पर पहली बार विचार हुआ है, यथा "तीर्थंकर और क्षत्रियकुल" "तीर्थकर श्री नाथ सम्प्रदाय" । परिशिष्टों ने ग्रन्थ की उपयोगिता में वृद्धि की है । प्राय: जैन ग्रन्थों में इतने व्यापक और तुलनात्मक परिशिष्ट नहीं देखे जाते किन्तु इस ग्रन्थ के तीनों परिशिष्ट कई तथ्यों का विहंगावलोकन प्रस्तुत करते हैं । दिये गये तथ्य तुलनात्मक हैं और श्वेतांम्बर तथा दिगम्बर दृष्टिकोण को अनासक्त रूप में प्रस्तुत करते हैं ।
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